जागरूकता से कम हो सकता है दूसरे स्ट्रोक का ख़तरा: ICMR

नई दिल्ली। हृदयाघात (हार्ट अटैक) की तरह स्ट्रोक भी एक गंभीर बीमारी है। भाग-दौड़ भरी जीवनशैली और स्वास्थ्य के प्रति ध्यान नहीं देने से मस्तिष्क आघात के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए उन्हें ‘मोबाइल हेल्थ’ से जोड़ने की मुहिम शुरू की है।

स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति की बाधा के कारण होता है। यह आक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में कटौती करता है। स्ट्रोक किसी भी उम्र के व्यक्ति को किसी भी समय हो सकता है। मस्तिष्क की कोशिकाओं में आक्सीजन नहीं मिलने से ये मृत हो जाती हैं और जिस कारण व्यक्ति याददाश्त खोने लगता है। धूमपान, तंबाकू का सेवन, संतुलित खानपान के प्रति गंभीर नहीं होना, मोटापन, शराब का सेवन करने से उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्राल, हृदय रोग, दिमाग में जा रही धमनियों में कोलेस्ट्रोल जमा होने से स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है।

आईसीएमआर के अनुसार, इस बारे में हाल ही में एक रिसर्च की गई। रिसर्च के अनुसार, भारत में 2 तरह के स्ट्रोक ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। पहला है इस्केमिक स्ट्रोक, जिसमें ब्रेन आर्टरी ब्लॉक हो जाती है। इससे स्ट्रोक आता है। और दूसरा है ब्रेन हेमरेज, जिसमें ब्रेन में ब्लड की आपूर्ति करने वाली आर्टरी में लीकेज हो जाती है।

रिसर्च की मानें तो, हाई बीपी के कारण दोनों तरह के स्ट्रोक की आशंका ज्यादा होती है। इसके अलावा हाई शुगर, हाई कोलेस्ट्रॉल, स्मोकिंग, मोटापा, शराब का सेवन और एक्सरसाइज की कमी भी स्ट्रोक आने की वजह बनती है। यही नहीं, 15 से 20 फीसदी मरीजों में दोबारा स्ट्रोक आने का डर रहता है। दोबारा स्ट्रोक आने का कारण है दवा को वक्त से पहले बंद कर देना, बीपी, शुगर, धूम्रपान और शराब का सेवन आदि होता है। ऐसे में ज़रूरी है कि मोबाइल हेल्थ सर्विस के चलते मरीजों को दूसरा स्ट्रोक आने से बचाया जाए।

सकारात्मक रहे परिणाम
लुधियाना क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज ऑफ न्यूरोलॉजी के प्रफ़ेसर जयराज डी पांडियन ने कहा कि स्प्रिंट इंडिया के साथ मिलकर 31 स्ट्रोक सेंटर में यह रिसर्च की गई थी। इस दौरान स्ट्रोक मरीजों के मोबाइल पर एसएमएस, हेल्थ एजुकेशन, संबंधित विषय पर विडियो और मरीजों को स्ट्रोक से बचने के वर्क बुक दिए गए थे। यह पूरा मैटर 12 भाषाओं में तैयार किया गया। इस दौरान एक सप्ताह में एक बार मरीजों को मैसेज और विडियो के ज़रिए जागरूक किया गया, ताकि वे दवा बीच में न छोड़ें और बीमारी को बढ़ावा देने वाली बुरी आदतों को रोके। 4,298 मरीजों पर हुए रिसर्च के दौरान मरीजों को 2 हिस्सों में बांटा गया। पहला कंट्रोल आर्म और दूसरा इंटरवेंशन आर्म। पाया गया कि जिन मरीजों से लगातार संपर्क किया गया, वैसे 83 फीसदी मरीजों में धूम्रपान और 85% मरीजों में शराब के सेवन को लेकर सुधार हुआ है, साथ ही मरीज समय से दवा भी ले रहे थे। कहा जा सकता है कि नई तकनीक का इस्तेमाल करके भविष्य में स्ट्रोक को काफी हद तक रोका जा सकता है। साथ ही लोगों की लाइफस्टाइल को भी बेहतर किया जा सकता है।

Exit mobile version