नई दिल्ली। विश्व में हर साल 4 फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है। लोगों को इस बीमारी की पहचान, लक्षण और रोकथाम के बारे में जानकारी दी जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल करीब 10 मिलियन लोगों की मौत कैसर के कारण होती है, लेकिन लाइफस्टाइल में बदलाव, नियमित जांच और इस बीमारी के शुरूआती लक्षण को पहचान कर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात दिया जा सकता है।
कैंसर को हराने वालों की लिस्ट में एक नाम प्रतीक रावल का भी है, जिनका जन्म भावनगर, गुजरात मे हुआ था और अभी वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक कामयाब कार्यकारी निर्माता हैं। 17 साल की उम्र में प्रतीक अचानक बीमार हो गए और जांच में पाया गया कि उन्हें लिंफोब्लास्टिक लिंफोमा कैंसर (lymphoblastic lymphoma cancer) हुआ हैं। मुंबई के डॉक्टरों ने निदान देते हुए कहा कि वो सिर्फ कुछ महीने ही जीवित रह पाएंगे। प्रतीक के माता-पिता अपने बेटे का जीवन बचाने की उम्मीद से अपने शहर अहमदाबाद लेकर गए, जहां उन्हें शुरुआती दिनों में आयुर्वेदिक उपचार दिया गया। उसके बाद अहमदाबाद के डॉ. पंकज शाह के मार्गदर्शन में प्रतीक ने ऍलोपॅथिक उपचार शुरू किया। अगले 3 सालों तक उन्हें कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी दी गई।
7 साल की बच्ची से मिला हौसला
अस्पताल में कैंसर के उपचार के दौरान प्रतीक ने एक 7 साल की एक छोटी बच्ची को देखा, जो कैंसरग्रस्त थी और उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी। इस दृश्य ने प्रतीक को अंदर तक हिला दिया। वे उस लड़की की पीड़ा को देख के रो पड़े थे और तभी उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया में और भी लोग हैं, उससे ज्यादा दर्द और तकलीफ में हैं।
प्रतीक के माता पिता उनके पीछे ऐसे चट्टान की तरह खड़े थे। महंगे कैंसर उपचार की वजह से उनका परिवार आर्थिक संकट में आ गया था। बाद में उन्होंने कैंसर को मात दी और एक नई ऊर्जा के साथ 1998 की शुरुआत में फिर से मुंबई लौट आए। इलाज के दौरान और उसके बाद भी प्रतीक का भोजन बिल्कुल सात्विक रहता था। हमेशा घर का खाना, हरी सब्जियां और फल का सेवन करते थे। इससे उन्हें कमजोर शरीर को मजबूत बनाने में मदद मिली। प्रतीक का मानना है कि किसी भी बीमारी को हारने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ ध्यान, प्राणायाम, हंसना और निडर रहना जरूरी है।
लोगों को संदेश
प्रतीक कहते हैं कि सफलता, नाम, प्रसिद्धी, पैसा…. इन सब चीजों ने मुझे मानवीय मूल्यों और कृतज्ञता कभी नहीं सिखाई, जितना मैं कैंसर के इलाज के दौरान तीन सालों में सीखा। हमें एक ही बात समझनी चाहिए कि हम धरती पर सीमित समय के लिए हैं, तो हमें खुद को शक्तिशाली बनाना है और इससे पहले कि हमारे जीवन का पर्दा गिर जाए, जितना हो सके उतना लोगों की मदद कर उनके चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करें।
इन चर्चित लोगों ने भी दी कैंसर को मात
अपने हौसले से कैंसर को मात देने वाले बहुत लोग हैं, जो कैंसर पीड़ितों के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं। भारत को वर्ष 2011 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जिताने वाले ऑलराउंडर युवराज सिंह, बॉलीवुड अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे, मनीषा कोइराला, लीजा रे ऐसे ही कुछ चर्चित नाम हैं।
युवराज सिंह
वर्ष 2011 में वर्ल्ड कप में युवराज सिंह अपने प्रचंड फॉर्म में थे। उनका बल्ला विरोधी गेंदबाजों की जमकर खबर ले रहा था। देश के लिए वर्ल्ड कप लाने के लिए युवराज जी जान लगा रहे थे, लेकिन उनका शरीर न केवल थकान महसूस कर रहा था, बल्कि उन्हें खून की उल्टियां तक हो जाती थीं। श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मैच में जीत दिलाने के बाद ही युवराज ने अपना बॉडी चेकअप कराया और उन्हें कैंसर का पता चला।
उनके फेफड़ों के पास एक टेनिस बॉल की आकार का ट्यूमर था, जो एक दुर्लभ किस्म का कैंसर था। मेडिकल की भाषा में उसे मीडियास्टिनल सेमिनोमा कहते हैं। युवराज इलाज की लंबी प्रक्रिया से गुजरे, लेकिन उन्होंने कैंसर को उसी तरह मात दी, जैसे वो क्रिकेट के मैदान पर विरोधियों के छक्के छुड़ाया करते थे।
सोनाली बेंद्रे
बॉलीवुड अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे को वर्ष 2018 में कैंसर का पता चला। उन्हें हाईग्रेड मेटास्टैटिक कैंसर था। यह एक ऐसा कैंसर है, जो शरीर के एक हिस्से से होकर दूसरे हिस्से को अपनी जद में ले लेता है और धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाता है। कैंसर के इस प्रकार को बहुत ही घातक माना जाता है।
जब सोनाली कैंसर से पीड़ित हुईं तो उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी सार्वजनिक की। साथ ही, लोगों को कैंसर के प्रति जागरूक भी किया। जब सोनाली का इलाज शुरू हुआ तो कैंसर बहुत तेजी से उनके शरीर में फैल रहा था। कैंसर से जंग जीतकर सोनाली आज स्वस्थ हैं। वो टीवी शो के माध्यम से कैंसर पीड़ितों का हौसला बढ़ाती रहती हैं।
लीजा रे
अभिनेत्री लीजा रे बॉलीवुड में तो बहुत अधिक धमाल नहीं मचा सकीं, लेकिन उन्होंने कुछ ही फिल्मों से अपना प्रभाव जरूर छोड़ा। आज उनकी चर्चा बॉलीवुड एक्ट्रेस से ज्यादा कैंसर को मात देने वाली पर्सनेलिटी को लेकर अधिक होती है। वर्ष 2009 में लीजा रे को बोन मैरो कैंसर का पता चला।
बोन मैरो कैंसर को लेकर आम धारणा यह है कि जो इसकी चपेट में आता है, उसका बचना करीब-करीब नामुमकिन होता है। लीजा रे ने 3 साल के संघर्ष के बाद बोन मैरो कैंसर को हरा दिया। जब वो कैंसर से पीड़ित थीं तो पैरों पर ठीक से खड़ी तक नहीं हो पाती थीं। कैंसर से मुक्ति के बाद लीला रे ने शादी भी की और आज जुड़वा बेटियों की मां हैं। वो अपने ब्लॉग और लेखों से कैंसर पीड़ितों को जीने की राह दिखाती हैं। उन्होंने अपनी संघर्ष गाथा को किताब क्लोज टू द बोन में लिखा है।
मनीषा कोइराला
मूलतः नेपाल की रहने वाली और बॉलीवुड में कई बड़ी हिट्स दे चुकीं मनीषा कोइराला 11 साल पहले कैंसर की चपेट में आ गई थीं। उन्हें ओवरी कैंसर का वर्ष 2012 में पता चला और वर्ष 2015 तक वह कैंसर से जूझती रहीं। इसके बाद उन्हें कैंसर मुक्त घोषित कर दिया गया। आज कुछ लोग तीसरे या चौथे स्टेज के कैंसर पर हार मान लेते हैं, जबकि मनीषा कोइराला को स्टेज 4 का कैंसर था। मनीषा कैंसर पीड़ितों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से वह जागरुकता फैलाती रहती हैं।
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