प्रयागराज। फिल्मों में धार्मिक किरदारों से खिलवाड़ का आरोप लगाते यूपी के संतों ने ‘धर्म संसद बोर्ड’ का गठन कर लिया है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने गुरुवार को धर्म सेंसर बोर्ड की गाइड लाइन जारी की। शंकराचार्य ने बताया कि इस सेंसर को गठित करने का उद्देश्य है कि किसी भी फिल्म या चलचित्र में ऐसे दृश्य नहीं होने दिया जाना चाहिए जो सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति पर संदेह या अनादर करता हो। दृश्य धर्म, संस्कृति और समाज के मूल्यों और मानकों के प्रति उत्तरदायी और संवेदनशील होने चाहिए। धर्म या संस्कृति का उपहास न हो।
शंकराचार्य ने माघ मेला शिविर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि यह बोर्ड सेंसर बोर्ड का विरोधी नहीं, उसका पूरक होगा। जैसे छलनी से कुछ छानने के बाद और पतली छलनी से दूसरी बार छाना जाता है उसी प्रकार नया बोर्ड भी काम करेगा जिससे अश्लीलता पूरी तरह से बंद हो। इस धर्म सेंसर बोर्ड में अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को रखा गया है। इसमें सुरेश मनचंदा प्रमुख होंगे, सुरेश मीडिया क्षेत्र से हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. पीएन मिश्र, सनातन धर्म से स्वामी चक्रपाणि, अभिनेत्री मानसी पांडेय, उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के उपाध्यक्ष तरुण राठी, सामाजिक विषयों के विशेषज्ञ कैप्टन अरविंद सिंह भदौरिया, संस्कृत मर्मज्ञ प्रीति शुक्ला, सनातन धर्म विशेषज्ञ डॉ. गार्गी पंडित, पूर्व निदेशक एएसआई डॉ. धर्मवीर इस बोर्ड के सदस्य होंगे।
उन्होंने बताया कि किसी हिंदू देवी-देवताओं के रूप में धार्मिक किरदार को किसी भी फिल्म, वेब सीरीज में दिखाने की अनुमति तब तक नहीं दी जाए, जब तक उसके किसी भाग में कोई दृश्य, शब्दावली, संवाद, गीत, हाव -भाव, भावार्थ कुछ भी सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति पर विपरीत असर डालता हो। जिस फिल्म में धर्म, संस्कृति, राष्ट्रीय मान बिंदुओं का हनन या उपहास होता हो, उसके प्रमाणन अथवा प्रदर्शन पर सम्यक रूप से रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा कि फिल्मों में महिला एवं पुरुष कलाकारों के परिधान भारतीय मर्यादा को रेखांकित करने वाले हों और अश्लीलता को बढ़ावा न मिले। दोअर्थी गीतों और भावों वाले संवाद पर भी रोक लगनी चाहिए। महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाओं को भी प्रस्तुत न किया जाए। इसके लिए फिल्म सेंसर बोर्ड को धर्म सेंसर बोर्ड की विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए उससे परामर्श करना चाहिए।
ताकि,समाज या धर्म, संस्कृति,परंपरा का हनन न होने पाए। यह बोर्ड यह भी सुनिश्चित करेगा कि फिल्मों के शीर्षक धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले न हों। इसके लिए बोर्ड की कार्यशैली झोंको, टोको, रोको के तहत अपनाई जाएगी। इस बोर्ड की मदद से स्कूल- कॉलेज और विश्वविद्यालयों में ऐसे कोई भी पाठ्यक्रम होंगे तो उनको भी हटवाया जाएगा। शंकराचार्य ने बताया कि इस बोर्ड के सदस्य ऐसे दृश्यों के बारे में निर्माताओं को टोकेंगे, फिर विरोध करेंगे और अगर जरूरत पड़ी तो फिर कोर्ट में जाएंगे, लेकिन ऐसे दृश्यों का प्रसारण अब नहीं होने दिया जाएगा।
Discussion about this post