नई दिल्ली। स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। इस दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत में बताया कि भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के सिमी के उद्देश्य को टिकने नहीं दिया जा सकता है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत में गृह मंत्रालय ने जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। इसमें सरकार ने कहा है कि प्रतिबंधित संगठन सिम्मी के कार्यकर्ता अन्य देशों में स्थित अपने सहयोगियों के साथ ‘नियमित संपर्क’ में हैं। उनके कार्य भारत में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित कर सकते हैं। सिम्मी के घोषित उद्देश्य हमारे देश के कानूनों के विपरीत हैं। विशेष रूप से भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के उनके उद्देश्य को किसी भी परिस्थिति में यहां रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि 27 सितंबर 2001 से प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद सिमी के कार्यकर्ता आपस में जुड़े हुए हैं और बैठकें भी कर रहे हैं। साथ ही वह षड्यंत्र में भी शामिल हैं। इसके अलावा हथियार और गोला-बारूद भी हासिल कर रहे हैं और ऐसी गतिविधियां कर रहे हैं, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डाल सकती हैं।
प्रतिबंध के बाद से सिमी कई राज्यों में कवर संगठनों की आड़ में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है और इसके कैडर कई नामों के तहत फिर से संगठित हो गए हैं। इनके अलावा तीन दर्जन से अधिक अन्य फ्रंट संगठन हैं, जिनके जरिए सिमी अपनी गतिविधियों को जारी रख रहा है। ये फ्रंट संगठन धन संग्रह, देशविरोधी साहित्य, कैडर के पुनर्गठन आदि सहित कई गतिविधियों में सिमी की मदद करते हैं।
2001 में लगाया गया था प्रतिबंध
गृह मंत्रालय ने 31 जनवरी, 2019 की अपनी अधिसूचना में सिमी पर लगे प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया था। सिमी पर पहली बार 2001 में प्रतिबंध लगाया गया था। उसके बाद से संगठन पर प्रतिबंध नियमित रूप से बढ़ाया जाता रहा है। 2019 में आठवीं बार प्रतिबंध बढ़ाया गया था।
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