नई दिल्ली। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को लेकर चल रही बहस के बीच भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने पीएम मोदी से ट्वीट करते हुए एक सिफ़ारिश की है। पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का यह ट्वीट ऐसे समय में आया है जब कॉलेजियम को लेकर बहस जारी है।
सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने ट्वीट में संविधान के आर्टिकल 217 का जिक्र करते हुए कहा कि मैं प्रधानमंत्री मोदी से यह सिफ़ारिश करता हूं कि प्रधान मंत्री संविधान के अनुच्छेद 217 (जो संस्कृत और हिंदी में भी उपलब्ध है) को पढ़ें, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्रपति के माध्यम से केंद्र सरकार केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर निर्णय ले सकती है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए यह CJI और उनकी गठित समिति का विशेषाधिकार है।
आखिर विवाद क्या है?
केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति करने की पूरी प्रक्रिया को ही ‘संविधान से परे’ बता दिया था। उन्होने कहा था कि मैं न्यायपालिका या न्यायाधीशों की आलोचना नहीं कर रहा हूँ। मैं सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की वर्तमान प्रणाली से ख़ुश नहीं हूँ। कोई भी प्रणाली सही नहीं है। हमें हमेशा एक बेहतर प्रणाली की दिशा में प्रयास करना और काम करना है।
उप-राष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़, लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला भी कह चुके हैं कि न्यायापालिका, विधायिका के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है।
क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम में केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव देते हुए चीफ जस्टिस DY Chanderchud को एक पत्र लिखा है। उन्होने अपने पत्र में मांग की कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कॉलेजियम सिस्टम में सरकार का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
दरअसल अभी मौजूदा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। वहीं हाई कोर्ट कॉलेजियम में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और हाई कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। अहम बात यह है कि कॉलेजियम जिन नामों की सिफारिश देता है वो बाध्यकारी हैं।
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