नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कोलेजियम सिस्टम को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच गतिरोध जारी है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में अपना प्रतिनिधि चाहती है। इस संबंध में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है।
रिजिजू ने अपने पत्र में कहा है कि राज्य के प्रतिनिधियों को भी उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का हिस्सा होना चाहिए। कानून मंत्री के मुताबिक, इससे 25 साल पुराने कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही आएगी। न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रही खींचतान में यह पत्र नवीनतम है। एक महीने पहले रिजिजू ने पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के लिए वर्तमान प्रक्रिया की आलोचना की थी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उन्होंने हाल ही में यह भी कहा कि कॉलेजियम प्रणाली, जो कि एक प्रशासनिक कार्य है, न्यायाधीशों को अत्यधिक व्यस्त रख रही है और न्यायाधीशों के रूप में उनके कर्तव्यों को प्रभावित कर रही है।
उपराष्ट्रपति भी कर चुके हैं आलोचना
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी न्यायपालिका की अस्पष्टता को लेकर आलोचना कर चुके हैं। धनखड़ का कहना है कि जजों के चयन में सरकार की भूमिका होनी चाहिए। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कोलेजियम प्रणाली का दृढ़ता से बचाव किया है।
एलियन की तरह कोलेजियम सिस्टम
किरेन रिजिजू कोलेजियम सिस्टम को संविधान के लिए एलियन कह चुके हैं। उन्होंने ऐसी किसी भी प्रणाली पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें सरकार को न्यायाधीशों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने एनजेएसी को रद्द किये जाने के फैसले की भी आलोचना की है। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
क्या है कोलेजियम?
कोलेजियम का गठन साल 1993 में हुआ था। इसमें मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार जज होते हैं। मुख्य न्यायाधीश ही इसके अध्यक्ष होते हैं। इन पांच लोगों की सिफारिश पर ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति होती है। हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति पर भी कोलेजियम फैसला लेती है। इस कोलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल शामिल होते हैं।
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