दिल्ली। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को ‘फतवा’ या इस्लामी धार्मिक फरमानों को राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जब वे कांग्रेस के सदस्य हुआ करते थे तब कई बार उनके खिलाफ फतवे जारी किए गए थे।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक पांचजन्य द्वारा दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में कहा, ‘कुफ्र फतवे वास्तव में केवल राजनीतिक कारणों से दिए जाते हैं और राजनीतिक हथियारों के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं।’ आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि इसे इतिहास में देखें तो पहला कुफ्र का फतवा किसी गैर मुस्लिम के लिए नहीं। इस्लाम की पहली सदी की बात है। उस व्यक्तित्व के खिलाफ आया जिसकी परवरिश पैगंबर साहब ने की थी। हजरत अली के खिलाफ पहला फतवा जारी हुआ। उसी फतवे के नतीजे में उनका कत्ल किया गया।
खान ने कहा कि फतवा कभी भी धार्मिक कारणों से नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि दो सौ बार आयत आई है कुरान में जहां कहा गया है कि ये दुनिया में जो तुम्हारे बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जब मरने के बाद मेरे पास आओगे तो हम फैसला करेंगे कि सही कौन है बुरा कौन है। कुरान ये अधिकार तो पैगंबर को भी नहीं देता कि सही या बुरे का फैसला करें।
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि सन 80 में मुझे चुनाव लड़ना था। इंदिरा गांधी से कहा कि मैं देहात में पैदा हुआ हूं तो कानपुर मत भेजिए, लेकिन इंदिरा गांधी ने कहा कि आपकी हिंदी अच्छी है और हम 1952 से यह सीट नहीं जीते। उस समय हिंदी का कोई शब्द भी आ जाए तो कुफ्र का फतवा जारी हो जाता था। मेरे खिलाफ फतवा जारी हुआ कि मैं हिंदी बोलता हूं, तिलक लगवाता हूं, आरती करवाता हूं। मेरे नाम में भी उन्हें खामी नजर आई। दाराशिकोह पर कुफ्र का फतवा जारी किया गया। फतवा केवल राजनीतिक हथियार के रूप में लिया जाता रहा है।
AMU की स्थापना करने वाले सर सैय्यद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “सर सैय्यद ने कहा कि हम (मुस्लिम) अपने पिछड़ेपन के लिए खुद जिम्मेदार हैं, उन्होंने दोष मढ़ने की कोशिश नहीं की। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मुसलमान शिक्षा के मामले में पिछड़े रहेंगे तो वे पूरे देश के लिए मुसीबत बन जाएंगे।”
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