नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने धर्मांतरण को गंभीर मुद्दा बताते हुए सोमवार को कहा कि इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने छलपूर्ण धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने का आग्रह करने वाली याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की मदद मांगी।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी से कहा कि हम चाहते हैं कि अगर बलपूर्वक या फिर लालच से धर्म परिवर्तन हो रहे हैं तो इसका पता लगाया जाए और अगर ऐसा हो रहा है तो हमें क्या करना चाहिए? और इसमें सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए। इस मामले में केंद्र मदद करे।
तमिलनाडु सरकार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता पी.विल्सन कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि तमिलनाडु में इस तरह से धर्मांतरण का सवाल ही नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आपत्ति जताते हुए कहा कि “कोर्ट की सुनवाई को अन्य मामलों की तरफ मोड़ने की कोशिश मत कीजिए। हम पूरे देश को लेकर चिंतित हैं अगर यह आपके राज्य में हो रहा है तो यह बुरा है और अगर नहीं हो रहा है तो अच्छी बात है। इसे एक राज्य को निशाना बनाने के तौर पर मत देखिए। इसे राजनैतिक मत बनाइए”।
बता दें कि वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसमें छल या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों से सख्त कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए केंद्र से इस गंभीर मुद्दे पर कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए थे। गुजरात सरकार ने शादी के लिए धर्म परिवर्तन से पहले जिलाधिकारी की इजाजत को अनिवार्य करने वाला कानून बनाया था। हालांकि गुजरात हाईकोर्ट ने इस कानून को स्टे कर दिया था। स्टे हटवाने के लिए गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस दौरान गुजरात सरकार ने कहा था कि धर्म की स्वतंत्रता में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि जबरन धर्मांतरण पूरे देश की समस्या है और तुरंत इस पर ध्यान देने की जरूरत है। याचिका में न्याय आयोग से भी एक रिपोर्ट और विधेयक तैयार कराने की मांग की है जिसमें डरा-धमकाकर या फिर लालच देकर धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सके। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आगामी 7 फरवरी को सुनवाई करेगा।
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