नई दिल्ली। उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए पैनल के खिलाफ एक याचिका को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता लागू करने पर पैनल के खिलाफ इस याचिका को खारिज कर दिया है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ”सिर्फ समिति के गठन को चुनौती नहीं दी जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत राज्यों के पास इस तरह की समिति गठित करने का अधिकार है।” दरअसल कॉमन सिविल कोड लागू करने के लिए गुजरात और उत्तराखंड ने अपने यहां कमेटी का गठन किया है। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट में निर्णय लिया जाएगा। माना जा रहा है कि सभी भाजपा शासित राज्य अपने यहां कॉमन सिविल कोड लागू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। विपक्ष इसका विरोध कर रहा है।
मई में उत्तराखंड सरकार को रिपोर्ट सौंप सकती है समित
उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल 27 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति को राज्य में समान नागरिक संहिता के अध्ययन और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। समित मई 2023 तक अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है। समित का कार्यकाल छह और महीने के लिए बढ़ाया गया था। उत्तराखंड इस मामले में ऐसा फैसला लेने वाला देश का पहला राज्य है।
वहीं पिछले साल 29 अक्टूबर को गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में अध्ययन करने वाली समिति को बनाने का फैसला लिया था। गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने कहा था कि चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू होने पहले समिति गठित कर ली जाएगी।
UCC पर कानून की मांग वाली अर्जी पर केंद्र ने दिया था ये जवाब
पिछले अक्टूबर की शुरुआत में ही केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था। इसमें कहा गया था कि सरकार संसद को समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने को लेकर कोई निर्देश नहीं दे सकता है। एक वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में अर्जी देकर समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने की मांग की थी, जिसके जवाब में केंद्र ने हफलनामा दाखिल किया था। अश्विनी उपाध्याय की याचिका में उत्तराधिकार, विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, रखरखाव और गुजारा भत्ता वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की गई थ।
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