नाएप्यीडॉ। विवादित बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु म्यांमार सरकार ने सम्मानित करते हुए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा है। विराथु लंबे समय से अपने अति-राष्ट्रवादी और इस्लाम विरोधी बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं। म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ उनके बयानों के कारण वह काफी अलोकप्रिय हो चुके हैं।
देश के सैन्य शासक जनरल मिन आंग हलिंग द्वारा पुरस्कार से सम्मानित विराथु उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं, जिन्हें बुधवार को ब्रिटेन से स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर मानद उपाधि और अन्य प्रकार की मान्यता मिली है। वर्ष 2013 में टाइम मैगजीन ने कवर पर, ‘द फेस ऑफ़ बुद्धिस्ट टेरर’ शीर्षक से उनकी तस्वीर छापी थी।
म्यांमार से रोहिंग्याओं को करना पड़ा पलायन
अशीन विराथु को साल 2012 में तब बड़े स्तर पर पहचान मिली जब रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की। तब उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया था। उन्होंने मुस्लिमों के स्वामित्व वाले व्यवसायों का बहिष्कार करने और बौद्धों और मुसलमानों के बीच विवाह पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया था। कुछ मानवाधिकार समूहों ने विराथु पर 2017 में एक सैन्य अभियान की नींव रखने के लिए और रोहिंग्या समुदाय के प्रति शत्रुता को भड़काने में मदद करने का आरोप लगाया। विराथु के बयानों की वजह से म्यांमार से 7 लाख से भी अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
2001 में पहली बार मिली पहचान
अशीन विराथु का जन्म 1968 में हुआ था। उन्होंने 16 बरस में घर छोड़ दिया और भिक्षु बन गए। विराथु को पहली बार पहचान 2001 में तब मिली जब जब अफगानिस्तान के बामियान में तालिबान ने बुद्ध प्रतिमा तोड़ी थी। विराथु म्यांमार में 969 आंदोलन से जुड़े और इस संस्था के सबसे बड़े नेता बन गए। मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़काने जैसे आरोप लगाकर विराथु को कैद कर लिया गया। साल 2003 में उन्हें 25 साल जेल की सजा सुनाई गई, लेकिन साल 2010 में उन्हें अन्य राजनीतिक बंदियों के साथ रिहा कर दिया गया।
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