लखनऊ। उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आ गया है। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए फौरन चुनाव कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार की दलीलों को नहीं माना।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार को झटका देते हुए निकाय चुनावों के लिए 5 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही राज्य सरकार को बगैर आरक्षण निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया है। अदालत का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित ट्रिपल टेस्ट ना हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट ने 2017 के ओबीसी रैपिड सर्वे को नकार दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं पर एक साथ पारित किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अब प्रदेश में किसी भी तरह का ओबीसी आरक्षण नहीं रह गया है। जबकि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें यथावत रहेंगी यानी इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।
कैसे होता है रैपिड सर्वे
रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण करते हुए इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाता है।
जानें, क्या है ट्रिपल टेस्ट
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा। इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा और तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा।
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