बर्लिन। जर्मनी में एक 97 साल की बुजुर्ग महिला को 10505 लोगों की हत्या का दोषी पाया गया है। यह बुजुर्ग महिला कोई साधारण महिला नहीं है, बल्कि नाजी शिविर में तैनात रह चुकी और हिटलर की टाइपिस्ट रहीं इर्मगार्ड फर्चनर हैं।
इर्मगार्ड फर्चनर नाजी सेना में पूर्व सेक्रेटरी थीं। उन्हें जिस वक्त हिरासत में लिया गया था, तब वह एक टीनएजर थीं। वह पहली ऐसी महिला हैं जिन्हें नाजी अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है। गिरफ्तारी के वक्त वह स्टेंथॉफ में थीं। रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 1943 से 1945 तक उन्होंने यहां टाइपिस्ट के रूप में काम किया था। इर्मगार्ड को कोर्ट ने दो साल की निलंबित जेल की सजा सुनाई थी। यूं तो वह नाजी सेना में सैनिक के रूप में काम नहीं करती थीं और उनकी सेवाएं एक असैन्यक कर्मी के रूप में थीं लेकिन इनके मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि कि भले ही वह असैन्य कर्मी रही हों, लेकिन उन्हें इस बात की पूरी जानकारी थी कि कैंप में क्या चल रहा है। इस तरह इस अपराध में वह भी शामिल थीं। अभियोजकों ने कहा कि महिला ने स्वीकार किया था कि उसके कैंप में बहुत से पत्राचार और कई फाइलें ऐसी थीं जिसमें उसे कैदियों की कुछ हत्याओं के बारे में बहुत कुछ पता था।
गैस चैंबर में मारे गए थे लोग
माना जाता है कि स्टेथॉफ के शिविरों में स्थितियां काफी भयावह थीं। स्टेथॉफ में 65,000 लोग मारे गए थे। इर्मगार्ड स्टेथॉफ शिविर में मरने वालों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर मुहर लगाने का काम करती थी। इनमें से कुछ गैर-यहूदी कैदी थे और कुछ सोवियत सैनिक थे। इर्मगार्ड 18 या 19 साल की थी जब उसे गिरफ्तार किया गया था। उसका ट्रायल विशेष किशोर न्यायालय में चला था।
स्टेथॉफ पोलैंड के ग्दान्स्क शहर के करीब है। अमेरिका स्थित होलोकॉस्ट म्यूजियम के मुताबिक, स्टैथॉफ में कैदियों को मारने के लिए कई तरह के क्रूर तरीके अपनाए जाते थे। यहां तक कि उन्हें गैस चैंबर में भी रखा जाता था। इन चैंबर्स में Zyclone B गैस का इस्तेमाल किया गया था। इर्मगार्ड ने अपने खिलाफ जांच शुरू होने के 40 दिन बाद कहा था, ‘जो हुआ उसके लिए मैं माफी मांगती हूं। आज तक मुझे खेद है कि मैं उस समय स्टेथॉफ में थी। मैं यही कह सकती हूं। सितंबर 2021 में जब ट्रायल शुरू हुआ तो फर्चनर अपने रिटायरमेंट होम से भाग गई थी। जिसके बाद वह हैम्बर्ग की एक सड़क पर पाई गईं थीं।
क्या था होलोकॉस्ट
1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। बताया जाता है कि 1941 से ऑश्वित्ज के नाजी होलोकॉस्ट सेंटर पर हिटलर की खुफिया एजेंसी एसएस यूरोप के अधिकतर देशों से यहूदियों को पकड़कर यहां लाती थी। जहां काम करने वाले लोगों को जिंदा रखा जाता था, जबकि जो बुढ़े या अपंग लोग होते थे उन्हें गैस चेंबर में डालकर मार दिया जाता था। इन लोगों के सभी पहचान के सभी दस्तावेजों को नष्ट कर हाथ में एक खास निशान बना दिया जाता था।
यहूदियों को मौत से पहले दी जाती थी यातनाएं
इस कैंप में नाजी सैनिक यहूदियों को तरह तरह के यातनाएं देते थे। वे यहूदियों के सिर से बाल उतार देते थे। उन्हें बस जिंदा रहने भर का ही खाना दिया जाता था। भीषण ठंड में भी इनकों केवल कुछ चिथड़े ही पहनने को दिए जाते थे। जब इनमें से कोई बीमार या काम करने में अक्षम हो जाता था तो उसे गैस चेंबर में डालकर या पीटकर मार दिया जाता था। इस कैंप में किसी भी कैदी को सजा सार्वजनिक रूप से दी जाती थी, जिससे दूसरे लोगों के अंदर डर बना रहे। कई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि होलोकॉस्ट में करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या की गई थी, जो इनकी कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा था।
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