भोपाल। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश बाघों की मौत के मामले में भी देश में पहले स्थान पर बना हुआ है। यहां पिछले 11 माह आठ दिनों में 33 बाघों की मौत हुई है। जबकि बाघों की संख्या के मामले में देश में दूसरे नंबर के राज्य कर्नाटक में 14 और तीसरे नंबर पर रहे उत्तराखंड में इस वर्ष अब तक छह बाघों की मौत हुई है। यदि बाघों की मौत के आंकड़े देखें, तो पिछले चार साल में प्रदेश में 134 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 35 मामले शिकार के हैं। जबकि आपसी लड़ाई, कुएं में गिरने या सड़क दुर्घटना में 80 बाघ मरे हैं।
मध्य प्रदेश में बाघों की सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की संख्या बढ़ी है पर सुरक्षाकर्मी नहीं बढ़ाए गए। बल्कि स्वीकृत पदों से कम कर्मचारी पदस्थ हैं। इस कारण पार्क और उससे सटे क्षेत्र में प्रभावी गश्त नहीं हो पा रही है। यही कारण है कि हर साल बाघों-तेंदुओं का शिकार होता है। इस साल अब तक छह बाघों के शिकार की जानकारी सामने आई है। वहीं बाघों की बढ़ती संख्या भी सुरक्षा इंतजामों पर भारी पड़ रही है। बाघ, संरक्षित क्षेत्रों से बाहर निकल रहे हैं। जिससे उनकी सुरक्षा करना मुश्किल हो रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 के बाघ आकलन के अनुसार मध्य प्रदेश में 526, कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में 442 बाघ हैं।
मवेशियों के शिकार के कारण निशाने पर आते हैं बाघ
बस्ती से सटे जंगलों में सक्रिय बाघों का सबसे अधिक शिकार होता है। दरअसल, वे मवेशियों का शिकार करने के आदी हो जाते हैं। इसमें ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है। ऐसे में मवेशी मालिक बाघ को जहर देकर, करंट लगाकर या फंदे में फंसाकर मार देते हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में शिकारी शाकाहारी वन्यप्राणियों के लिए करंट और फंदे लगाते हैं, जिनमें कई बार बाघ या तेंदुआ भी फंस जाते हैं।
अब ड्रोन से भी निगरानी
शिकार की घटनाओं को रोकने और संरक्षित क्षेत्र में अनाधिकृत प्रवेश रोकने के लिए प्रदेश के सभी छह टाइगर रिजर्व में ड्रोन से निगरानी शुरू कर दी गई है। पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा, पेंच, सतपुड़ा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में इससे शिकार की घटनाएं कम हुई हैं पर पूरी तरह से रोक नहीं लगी है।
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