नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम व्यवस्था पर न्यायपालिका और सरकार आमने सामने आ गई है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम की सिफारिशों को लंबे समय तक दबाए रखने के रवैये पर कड़ा एतराज जताते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोलेजियम व्यवस्था कानून है और इसका पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित प्रत्येक कानून सभी हितधारकों पर बाध्यकारी है।
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को मंजूर करने में केंद्र द्वारा कथित देरी से जुड़े मामले में सुनवाई कर रहा था। जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम पर सरकार के लोगों की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को उचित नहीं माना जा सकता। उन्होंने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को इस बारे में सरकार को राय देने को कहा।
पीठ में जस्टिस एएस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि वह अटॉर्नी जनरल से अपेक्षा रखती है कि सरकार को राय देंगे, ताकि शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का अनुपालन हो। पीठ ने कहा कि कॉलेजियम ने जिन 19 नामों की सिफारिश की थी, उन्हें सरकार ने हाल में वापस भेज दिया। यह ‘पिंग-पांग’ का खेल कैसे खत्म होगा? जब तक कॉलेजियम प्रणाली है, जब तक यह कायम है, हमें इसे लागू करना होगा। आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं, कोई आपको दूसरा कानून लाने से नहीं रोक रहा। अगर समाज का एक वर्ग तय करना शुरू कर देगा कि किस कानून का पालन होगा और किस का नहीं तो अवरोध की स्थिति बन जाएगी।
केंद्र ने कही यह बात
केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कॉलेजियम स्तर पर हाईकोर्ट के जजों के नामों की अस्वीकृति 25 फीसदी है, जो बहुत अधिक है। जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर केंद्र और न्यायपालिका के बीच चल रहे टकराव के बीच केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 30 नवंबर, 2022 तक हाईकोर्ट के जजों की स्वीकृत क्षमता 1108 है। लेकिन फिलहाल 776 जज हैं और 332 रिक्तियां हैं। हाईकोर्ट ने 146 (44 फीसदी) सिफारिशें की हैं जो सरकार और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं।
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