हाईकोर्ट ने राजनीतिक दलों से पूछा, जातीय रैलियों पर क्यों न लगा दी जाए पूर्ण पाबंदी

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश में जातीय रैलियों पर रोक लगाने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त समेत प्रदेश के चार प्रमुख दलों भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है। नोटिस में राजनीतिक दलों को बताना होगा कि राज्‍य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाना चाहिए।

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव द्वारा वर्ष 2013 में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। मामले की 11 नवंबर को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि वर्ष 2013 में ही नोटिसें जारी होने के बावजूद चारों प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से कोई पेश नहीं हुआ है। इस पर न्यायालय ने नई नोटिसें जारी करने का आदेश दिया।

इस जनहित याचिका के माध्यम से प्रदेश में जातीय रैलियों पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की गई थी । याचिका पर सुनवाई के पश्चात न्यायालय ने 11 जुलाई 2013 को प्रदेश में राजनीतिक दलों द्वारा जातीय आधारित रैलियाँ किए जाने पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा था कि जातीय सिस्टम समाज को विभाजित करता है और इससे भेदभाव उत्पन्न होता है। न्यायालय ने कहा कि जाति आधारित रैलियों को अनुमति देना संविधान की भावना, मौलिक अधिकारों व दायित्वों का उल्लंघन है।

नोटिस में राजनीतिक दलों को बताना होगा कि राज्‍य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाना चाहिए। चुनाव आयोग को उल्लंघन के मामले में उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए। याचिका दाखिल करने वाले शख्स ने कहा है कि राजनीतिक दलों की ऐसी गतिविधियों की वजह से कम संख्या वाली जातियां अपने ही देश में दोयम दर्जे की नागरिक बन गई हैं।

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