अहमदाबाद। गुजरात के मोरबी पुल हादसे पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने पुल की मरम्मत के लिए ठेका देने के तरीकों पर भी सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने कहा कि मोरबी नगर पालिका को होशियारी दिखाने की जरूरत नहीं है।
गुजरात हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति ए.जे. शास्त्री की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई की। पीठ ने कहा कि राज्य ने गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 263 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया? प्रथम दृष्टया नगरपालिका ने चूक की है। इसके कारण ही यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है। इसी के चलते 135 निर्दोष लोगों की जान चली गई।कोर्ट ने कहा कि नगरपालिका विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रहा है। 2008 के एमओयू या 2022 के समझौते के तहत पुल की फिटनेस को प्रमाणित करने के लिए कोई शर्त रखी गई थी। साथ ही कोर्ट ने पूछा कि पुल को प्रमाणित करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति कौन था।
वहीं, गुजरात हाईकोर्ट में अब इस मामले पर अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी। कोर्ट की पीठ ने पूछा कि पहला एग्रीमेंट समाप्त हो जाने के बाद किस आधार पर ठेकेदार को पुल को तीन सालों तक ऑपरेट करने की इजाजत दी गई? अदालत ने कहा कि इन सवालों का जवाब हलफनामे में अगली सुनवाई के दौरान देना चाहिए, जो कि दो हफ्तों के बाद होगी।
सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका मंजूर
सुप्रीम कोर्ट सोमवार को मोरबी पुल ढहने की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने पर सहमत हो गया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील विशाल तिवारी की इस दलील पर गौर किया कि मामले की तत्काल सुनवाई की जरूरत है। बेंच ने पूछा, हमें कागजात देर से मिले। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। अत्यावश्यकता क्या है? वकील ने कहा, इस मामले में अत्यावश्यकता है क्योंकि देश में बहुत सारे पुराने ढांचे हैं, इस बात पर जोर देते हुए कि मामले को प्राथमिकता से सुना जाए।
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