नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे चुनौती दी थी
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने सबसे पहले अपना फैसला सुनाया और उन्होंने इस कोटा सिस्टम को सही बताया। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी समर्थन में अपना फैसला सुनाया। जस्टिस पादरीवाला ने भी EWS कोटे के फैसले को सही बताया। जजों ने संविधान के 103वां संशोधन को सही ठहराया और कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है। चौथे जस्टिस भट ने सरकार के ईडब्ल्यूएस कोटे पर अपनी असहमति जाहिर की है और फैसले को सही नहीं बताया है, चीफ जस्टिस यूयू ललित ने भी जस्टिस भट से अपनी सहमती जाहिर की। इससे साफ हो गया है कि पांच में से तीन जजों ने एकमत फैसला दे दिया और अब साफ हो गया है कि यह सिस्टम भारत में लागू होगा।
27 सितंबर को कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। CJI ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन CJI एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था। CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की।
हमने 50% का बैरियर नहीं तोड़ा- केंद्र की दलील
केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।
बता दें मोदी सरकार ने जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत EWS कोटा लागू किया गया था लेकिन इसे कोर्ट में चुनौती दी गई। EWS आरक्षण पर संविधान पीठ में जो जज हैं उनमें चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस जेबी पादरीवाला शामिल हैं।
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