नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने शुक्रवार को कहा कि एक जज का काम लोगों को खुश करना नहीं है। उसे यह भूमिका इसलिए नहीं सौंपी जाती है। न्यायमूर्ति गुप्ता इसी महीने 16 अक्तूबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में शीर्ष न्यायालय के दो जजों की बेंच की राय अलग-अलग थी। जस्टिस गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
शीर्ष अदालत के न्यायधीश के रूप में उनके अंतिम कार्य दिवस पर सम्मान कार्यक्रम आयोजित किया गया था। यह आयोजन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के द्वारा किया गया था। लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘एक जज लोगों को खुश नहीं कर सकता… यह काम उसका नहीं है। वह भूमिका सार्वजनिक जीवन में दूसरों को दी गई है। कोई व्यक्ति लोगों को खुश करने के इरादे से अपना काम नहीं कर सकता। मैं अदालत में कठोर था मुखर था।’
न्यायमूर्ति गुप्ता ने अदालत में मौजूद अधिवक्ताओं से कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से बोल रहा हूं, मैंने लगभग 20 वर्षों की अपनी पारी का भरपूर आनंद लिया। प्रत्येक दिन मेरे लिए सीखने वाला था और आप सभी ने सीखने की प्रक्रिया में मेरी मदद की है। बहुत-बहुत धन्यवाद।’
उन्होंने आगे कहा, “मैंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन अत्यंत विनम्रता और ईमानदारी के साथ करने की कोशिश की है। हालांकि कभी-कभी मैं अपना आपा खो देता हूं। कोई भी पूर्ण नहीं है। मैं पूर्णता का कोई दावा नहीं कर सकता। जो भी गलती मैंने की हैं, वह अनजाने में हुई हैं। मैं अपने दिन में बहुत संतोष के साथ सेवानिवृत्त हो रहा हूं।”
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता संस्था की महान संपत्ति
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश ललित ने न्यायमूर्ति गुप्ता को संस्था की महान संपत्ति करार दिया। न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि वह एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके सामने कुछ भी प्रस्तुत किया जाता है, उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए हर तह में जाने की क्षमता रखते हैं। सीजेआई ने ‘पूरी तरह से डिजिटल’ होने के लिए न्यायमूर्ति गुप्ता की प्रशंसा की और कहा कि उनकी अदालत ने हमेशा पेपरलेस होने के लिए प्रोत्साहित किया। वह कानून सहायता के काम से जुड़े थे। उन्होंने जो कुछ भी किया है, अपनी पूरी क्षमता से किया है।
Discussion about this post