नई दिल्ली/बैंगलूर। कर्नाटक के स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा। इससे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में हिजाब को कुरान का हिस्सा नहीं बताया था। याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म के पूरी तरह पालन का राज्य सरकार का आदेश सही ठहराया गया था।
जनवरी में कर्नाटक के उडुपी स्थित सरकारी पीयू कॉलेज ने कथित तौर पर हिजाब पहनकर छह लड़कियों को प्रवेश करने से रोक दिया गया था। इसके बाद प्रवेश नहीं दिए जाने को लेकर छात्राएं कॉलेज के बाहर धरने पर बैठ गईं थीं। इसके बाद इसी तरह के मामले कुंडापुर और बिंदूर के कुछ अन्य कॉलेजों में भी आए। राज्य में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जहां मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में कॉलेजों या कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इस मामले को लेकर छात्राएं हाईकोर्ट पहुंची।
हाईकोर्ट ने हिजाब बैन को ठहराया था सही
हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पीठ ने माना था कि शिक्षण संस्थानों में ड्रेस निर्धारित है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते और हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं को खारिज कर दिया था। 15 मार्च को आए हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया कि स्कूल-कॉलेजों में किसी भी तरह की धार्मिक यूनिफॉर्म पहनना गलत है। कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है और स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म के पालन का राज्य का आदेश सही है।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए, छात्राओं की ओर से एक स्पेशल लीव पेटिशन दायर की गई। कर्नाटक सरकार की ओर से दलीलें पेश कर रहे सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,” 2004 से कोई भी हिजाब नहीं पहन रहा था, लेकिन दिसंबर 2021 में अचानक छात्राएं इसे पहन कर कॉलेज आने लगीं. 2022 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए सोशल मीडिया पर आंदोलन शुरू कर दिया।”
उन्होंने कहा, ”ये स्टूडेंट्स की ओर से अचानक शुरू किया गया आंदोलन नहीं था। ये छात्र-छात्राएं एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे. ये लोग किसी के इशारे पर काम कर रहे थे।” तुषार मेहता ने कहा कि हिजाब अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है। उन्होंने पूछा, यूनिफॉर्म का मकसद क्या है। यूनिफॉर्म एकरूपता और समानता के लिए होता है।”
मेहता ने ज़ोर देकर कहा कि ये धर्म का मामला नहीं है बल्कि ये छात्रों को बराबरी का अधिकार देने का मामला है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया कर रहे हैं।
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