चेन्नई। बच्चे की कस्टडी के एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने शादी को लेकर अहम टिप्पणियां की हैं। अदालत ने कहा कि शादी का अर्थ सिर्फ शारीरिक सुख पाना ही नहीं है बल्कि परिवार को आगे बढ़ाना भी है।
अदालत ने कहा कि यही एक आधार है, जिससे परिवार की चेन आगे बढ़ती है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी शादी में बच्चा कपल के बीच उन्हें आपस में जोड़े रखने का आधार होते हैं। जस्टिस कृष्णन रामास्वामी ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि दंपति के बीच संबंध खत्म हो सकते हैं। लेकिन उनका बच्चों के साथ माता और पिता के तौर पर संबंध बना रहता है।
उन्होंने कहा कि किसी भी बच्चे के लिए उसके माता और पिता दोनों अहम होते हैं, भले ही उनमें से किसी ने अन्य से शादी कर ली हो। वकील दंपति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर चल रहे केस की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की। दरअसल वकील शख्स ने अदालत की ओर से दिए गए कई आदेशों के बाद भी पत्नी को अपने बच्चे से मुलाकात नहीं करने दिया था। इसके बाद महिला ने अदालत का रुख किया और कहा कि पति ने पैरेंट्स के तौर पर उसके अधिकारों को खारिज करने की कोशिश की है। ऐसा करना गलत है और उसके अधिकारों को खारिज करने वाला है।
इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रामास्वामी ने कहा, ‘बच्चे को अपनी ही मां या पिता के खिलाफ खड़ा करना गलत है। यह एक तरह से उसे अपने ही खिलाफ करना है। एक बच्चे को सीधे तौर पर दोनों हाथों की जरूरत होती है यानी मां और बाप उसके लिए जरूरी होते हैं। बच्चों को पूरी जिंदगी और खासतौर पर वयस्क होने तक पैरेंट्स की जरूरत होती है।’ यही नहीं जस्टिस रामास्वामी ने कहा कि बच्चे में पैरेंट्स के प्रति तब तक नफरत की भावना नहीं हो सकती, जब तक उसका कोई करीबी और भरोसेमंद उसे न उकसाए। उन्होंने कहा कि यह ठीक नहीं है कि बच्चा जिसकी कस्टडी में हो, वह उसे दूसरे पैरेंट के खिलाफ भड़काने की कोशिश करे।
Discussion about this post