नई दिल्ली। भारत की धरती से लगभग सात दशक पहले लुप्त हो चुका चीता एक बार फिर देश की धरती पर अपनी फुर्ती और बिजली की रफ्तार से फर्राटा मारने आ रहा है। चीतों को लाने के लिए भारत का स्पेशल विमान नामीबिया पहुंच चुका है। इस स्पेशल विमान पर चीतों की खूबसूरत पेटिंग की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितम्बर अपने जन्मदिन के दिन इन चीतों को उद्यानों में बनाए गए विशेष बाड़े में छोड़ेंगे।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 16 सिंतबर को एक स्पेशल कार्गो फ्लाइट से चीते नामीबिया से निकलेंगे, जो 17 को जयपुर पहुंचेंगे। उसी दिन एक हेलिकॉप्टर के जरिए इन चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में लाया जाएगा। इसके लिए कूनो में खास तौर एक हेलिपेड बनाया गया है। पीएम मोदी इन चीतों को देश को सौंपेंगे। इस दल में कुल आठ चीते आ रहे हैं, जिनमें पांच मादा और तीन नर हैं। इन्हें लाने के लिए गत रविवार को भारत की ओर से बाकायदा एक टीम नामीबिया के लिए रवाना हो गई है।
मंत्रालय के वन्यजीव विभाग के अडिशनल डीजी डॉ. एस पी यादव का कहना था कि वैसे तो इन्हें कार्गों में रखकर भी लाया जा सकता था, लेकिन पीएम मोदी मानना था कि इन खास मेहमानों को यात्रा में कोई तकलीफ न हो, इसलिए स्पेशल प्लेन से लाया जा रहा है।
चीतों के आने के बाद उन्हें एक बाड़े में रखकर तीस दिनों तक क्वारंटीन किया जाएगा। इस दौरान उनके व्यवहार, सेहत व अनुकूलन पर पूरी तरह से नजर रखी जाएगी कि वे यहां के माहौल में खुद को कैसे ढालते हैं। एक महीने बाद इन चीतों को एक वर्ग किलोमीटर में बने बाड़े में छोड़ा जाएगा। उसके बाद लगभग एक से डेढ़ महीने बाद तीसरे चरण में उन्हें कूनो में खुला घूमने के लिए छोड़ दिया जाएगा। उनका कहना था कि चीतों के रख-रखाव, स्वास्थय, भोजन व उनके अनूकूल को लेकर सभी अंतराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जा रहा है।
विदेशी मेहमानों को देखते हुए उस इलाके के सभी कुत्तों का वैक्सीनेशन कर दिया गया है। ताकि उनके लिए किसी तरह की सेहत से जुड़ी कोई चुनौती न पेश आ सके। कूनो का मौजूदा एरिया 748 वर्ग किमी के इलाके में है। इसके लिए सरकार ने जहां 25 गांव खाली कराए हैं। इनमे से 24 गांवों के पूरी तरह से खालीकर वहां रहने वालों का पुर्नवसन कर दिया गया है। जबकि पार्क की सीमा पर बसे एक गांव को पुनर्वसन काम चल रहा है। सरकार की ओर से आसपास के गांव में रहने वाले लोगों को न सिर्फ जानकारी दी जा रही है, बल्कि उन्हें कौशल ट्रेनिंग भी दी गई है।
बता दें चीतों का तेजी से शिकार बढ़ जाने की वजह से ये प्रजाति संकट में आ गई थी। मध्य प्रदेश में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में देश में अंतिम तीन चीतों को मार डाला था। इसके बाद 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर देश में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया था।
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