नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-66 ए के तहत दर्ज हो रहे केस पर चिंता व्यक्त की है। जबकि इसे 2015 में असांवैधानिक घोषित कर दिया गया है। कोर्ट ने संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते के भीतर मामले को वापस लेने का निर्देश जारी किया।
सीजेआई उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह राज्यों से इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहे। इसके अलावा केंद्र सरकार के वकील जोहेब हुसैन को संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश तब दिया है, जब याचिकाकर्ता संगठन पीयूसीएल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने श्रेया सिंघल मामले में फैसला आने के बाद भी आईटी एक्ट की धारा-66ए के तहत दर्ज मामलों का ब्योरा पेश किया।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि आधिकारिक घोषणा के बाद भी इस धारा में केस दर्ज होना आश्चर्यजनक है। पीठ ने केंद्र को राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करके जल्द से जल्द उपचारात्मक उपाय करने के लिए कहा। साथ ही सभी राज्यों और हाईकोर्ट को नोटिस भी जारी किया। पीठ ने कहा कि अदालत अब इस मामले पर तीन हफ्ते के बाद विचार करेगी।
धारा 66ए के तहत कंप्यूटर डिवाइस के माध्यम से झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना आदि के उद्देश्य से आपत्तिजनक संदेश भेजने पर तीन साल की कैद और जुर्माना का प्रावधान था। 2015 में शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया था।
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