लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में बुधवार को तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए जल निगम, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने नमामि गंगे के तहत गंगा प्रदूषण खत्म करने पर किए गए खर्च का हिसाब भी मांगा है।
मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पूर्ण पीठ ने गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई की। कोर्ट को बताया गया कि जल निगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं हैं। इस पर कोर्ट ने पूछा,”तो फिर विभाग पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है? सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी को सौंप दी और खुद अक्षम अधिकारी से निगरानी कर रहा है।”
कोर्ट ने गंगा में प्रदूषण स्तर को लेकर कराई गई जांच की रिपोर्ट की लीपापोती पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आड़े हाथों लिया। साथ ही आईआईटी कानपुर और बीएचयू की प्रदूषण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करने पर केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की खिंचाई की। कोर्ट ने इससे पहले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक से पूछा था कि नमामि गंगे योजना के तहत अब तक कुल कितनी रकम खर्च की गई है।
सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया की गंगा उत्तर प्रदेश के 26 जिलों से होकर बहती है। इन शहरों से निकलने वाले सीवर के पानी को शुद्ध करने के लिए प्रदेश में केवल 35 एसटीपी लगाए गए हैं, जिनमें से तीन काम नहीं कर रहे हैं। 15 शहरों में एसटीपी है ही नहीं। वहां सीवर का पानी सीधे गंगा में गिराया जाता है।
इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई के दिन यह बताने का निर्देश दिया कि प्रदेश में कुल कितने नाले गंगा में गिराए जा रहे हैं। उनमें से कितनों का पानी एसटीपी में शोधित किया जा रहा है और कितने ऐसे नाले हैं जो सीधे गंगा में गिर रहे हैं। कोर्ट ने कानपुर की चमड़ा फैक्ट्रियों को वहां से शिफ्ट किए जाने के मामले में भी जानकारी मांगी है।
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