नई दिल्ली। देश में मंकीपॉक्स के बढ़ते खतरे के बीच भारत की स्वास्थ्य एजेंसिया लगातार इसे रोकने के लिए कदम उठा रही हैं। पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वीरोलोजी की ओर से बुधवार को कहा गया है कि हमने सफलतापूर्वक मंकीपॉक्स के मरीजे से इसके वायरस के क्लीनिकल स्पेसीमेन को आइसोलेट कर लिया है।
मंकीपॉक्स की वैक्सीन बनाने की दिशा में हमने पहली बड़ी बाधा को पार कर लिया है। इस कदम से भविष्य में देश के अनुसंधानकर्ताओं को मंकीपॉक्स का टीका बनाने के लिए शोध में मदद मिलेगी। मौजूदा समय में मंकीपॉक्स की वैक्सीन डेनमार्क की एक कंपनी के पास है।
एनआईवी पुणे की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर प्रज्ञा यादव ने कहा कि मंकीपॉक्स वायरस को आइसोलेट करने से इसकी पहचान करने के लिए किट तैयार करने में मदद करेगी, साथ ही भविष्य में मंकीपॉक्स की वैक्सीन तैयार करने में भी इससे मदद मिलेगी। स्मॉलपॉक्स के लिए इसी तर्ज पर पहले सफलतापूर्वक वैक्सीन तैयार की गई थी। कुछ इसी तरह के नजरिए को इस बार भी अपनाया जा रहा है। इस वायरस को आइसोलेट करने से रिसर्चर्स को इसके बर्ताव को समझने में मदद मिलेगी, आखिर यह कैसे लोगों को संक्रमित करता है, कैसे इस संक्रमण को बढ़ने से रोका जाए, इसको समझने में मदद मिलेगी।
बता दें कि मंकीपॉक्स वायरस डबल स्ट्रैंडेट डीएनए वायरस है, जिसमे दो अलग-अलग जेनेटिक्ट क्लैड, सेंट्रल अफ्रीकन और वेस्ट अफ्रीकन क्लैड हैं। संक्रमित मरीज के भीतर एक तरह का द्रव्य डाला जाता है जिसकी मदद से जिंदा वायरस को आइसोलेट किया जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि द्रव्य पैथोजेन में तब्दील होता है और वायरस को इससे आइसोलेट किया जाता है। यह काफी जटिल प्रक्रिया है और इसके लिए हाई बायो सेफ्टी लेवल की जरूरत होती है। इस तरह की तकनीक दुनिया में कम ही जगह पर उपलब्ध है।
कोरोना के वायरस के समय भी इसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। एनआईवी में कोरोना के वायरस को आइसोलेट किया गया था, इसके बाद भारत बायोटेक ने इसपर अनुसंधान शुरू किया था। वो इसी प्रक्रिया को इसपर भी अपना सकते हैं।
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