दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कानून बनाने को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दोनों सरकारें बिना न्यायिक सिफारिश के ऐसा कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।
जस्टिस संजीव सचदेव और जस्टिस तुषार राव गडेला की पीठ ने याचिकाकर्ता से जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर अपनी दलील को पुष्ट करने के लिए और सबूत व आंकड़े लाने को कहा क्योंकि वह केवल उसके द्वारा रखी गई खबरों के आधार पर इस मुद्दे का संज्ञान नहीं ले सकता है।
पीठ ने कहा कि वह सरकार को सिफारिश कर सकता है लेकिन पहले याचिकाकर्ता को प्रथमदृष्टया मामला बनाना पड़ेगा। आपकी याचिका में एक भी जबरन धर्म परिवर्तन के मामले का जिक्र नहीं है। यदि सरकार इस मुद्दे के बारे में जागरूक है तो वह कानून बना सकती है। यह उसके अधिकार क्षेत्र में है। सरकार को कानून बनाने से कौन रोक रहा है?
पीठ ने कहा है कि अगर वे आपके(याचिकाकर्ता) समान राय रखते हैं तो कोई भी उन्हें कानून बनाने से नहीं रोक रहा है। उन्हें इसके लिए कोर्ट की सिफारिश या आजादी की जरूरत नहीं है। पीठ भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें केंद्र और दिल्ली सरकार को धमकी, धोखे या काले जादू और अंधविश्वास का उपयोग कर धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
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