पति, दो बेटों, मां और भाई को खोकर टूट गई थीं द्रोपदी मुर्मू , जानें कितना कठिन रहा है उनकी जिन्दगी का सफर

आदिवासी नेता से पार्षद और झारखंड की पूर्व राज्यपाल से अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की उम्मीदवार से द्रौपदी मुर्मू भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन हो गई हैं। अपनी निजी दुश्वारियों को पार करते हुए राजनीति के सर्वोच्च पद पर पहुंची हैं। चमक दमक और प्रचार से दूर रहने वाली मुर्मू ब्रह्मकुमारियों की ध्यान तकनीकों की गहन अभ्यासी हैं। उन्होंने यह गहन अध्यात्म और चिंतन का दामन उस वक्त पकड़ा था, जब उन्होंने 2009 से लेकर 2015 के बीच अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया था।

द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं। अपने गृह राज्य ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित रायरंगपुर में पुरंदेश्वर शिव मंदिर के फर्श पर झाड़ू लगाते हुए जब 64 साल की मुर्मू की तस्वीरें सामने आईं तो वह उनके व्यक्तित्व के साथ तालमेल बिठाती नजर आ रही थी। मुर्मू के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह गहरी आध्यात्मिक और मृदुभाषी व्यक्ति हैं। उन्होंने यह गहन अध्यात्म और चिंतन का दामन उस वक्त थामा था, जब उन्होंने 2009 से लेकर 2015 तक की छह साल में अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया था।

फरवरी 2016 में दूरदर्शन को दिए एक इंटरव्यू में, द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन से जुड़े संघर्ष के बारे में बताते हुए कहा था कि उन्होंने 2009 में अपने बेटे को खो दिया था। मुर्मू ने कहा था, ‘मैं बर्बाद हो गई थी और डिप्रेशन से पीड़ित थी। अपने बेटे की मौत के बाद मेरी रातों की नींद उड़ गई। जब मैं ब्रह्मकुमारियों से मिलने गई, तो मुझे अहसास हुआ कि मुझे आगे बढ़ना है और अपने दो बेटों और बेटी के लिए जीना है।’ राष्ट्रपति पद के लिए 21 जून को एनडीए उम्मीदवार के रूप में नामित होने के बाद से, उन्होंने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।

सामाजिक कार्यों में समर्पित
ओडिशा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष मनमोहन सामल ने कहा कुछ दिन पहले कहा था, ‘‘वह (मुर्मू) बहुत तकलीफों और संघर्षों से गुजरी हैं, लेकिन वह विपरीत परिस्थितियों से नहीं घबराती हैं।’’ सामल ने कहा कि संथाल परिवार में जन्मी मुर्मू संथाली और ओडिया भाषाओं में एक उत्कृष्ट वक्ता हैं। उन्होंने कहा कि मुर्मू ने क्षेत्र में सड़कों और बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है। झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, मुर्मू ने अपना समय रायरंगपुर में ध्यान चिंतन और सामाजिक कार्यों में समर्पित किया। द्रौपदी मुर्मू ने बताया था कि वह 2015 में झारखंड की राज्यपाल बनने के बाद छह साल से अधिक समय से किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई थी।

कला में स्नातक फिर सरकारी नौकरी
देश के सबसे दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक मयूरभंज की रहने वाली मुर्मू ने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ओडिशा सरकार में सिंचाई तथा बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में नौकरी भी की। उन्होंने रायरंगपुर स्थित श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में भी काम किया। मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मुर्मू की बेटी इतिश्री ओडिशा के एक बैंक में काम करती हैं।

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