नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें 2002 के गुजरात दंगे के संबंध में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा तत्कालीन नरेंद्र मोदी व अन्य को दी गई क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी।
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने अपने आदेश में कहा है, ‘हम एसआईटी रिपोर्ट को स्वीकार करने और विरोध याचिका को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के फैसले को बरकरार रखते हैं। इस अपील में मेरिट के अभाव है, इसलिए याचिका खारिज की जाती है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जकिया और संजीव भट्ट सहित गुजरात के कुछ असंतुष्ट अधिकारियों को 2002 के गुजरात दंगों के बारे में झूठे दावे करने के लिए कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है।
जाकिया जाफरी के पति व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी दंगे के दौरान मारे गए थे। जाकिया ने एसआईटी द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद 9 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुजरात हाई कोर्ट ने पांच अक्टूबर 2017 को जाकिया की अर्जी खारिज कर दी थी। जाकिया ने एसआईटी के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी वहां से अर्जी खारिज होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दावा किया कि एसआईटी ने उपलब्ध सभी सामग्रियों की जांच नहीं की और इसकी जांच में पक्षपात किया गया। उन्होंने तर्क दिया था कि राज्य ने नफरत फैलाने में सहायता की थी। टीवी चैनलों पर शवों को दिखाया गया था, जिससे जाहिर तौर पर गुस्सा फूटा था। मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार को बढ़ावा देने के लिए सामग्री प्रसारित की गई थी। साबरमती एक्सप्रेस की विकृत तस्वीरें प्रसारित की गईं। सिब्बल की ओर से कहा गया था कि आरोपी पुलिस, नौकरशाह और राजनेता मोबाइल फोन पर संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे थे, जिनमें से कोई भी जब्त नहीं किया गया था।
मुकुल रोहतगी ने एसआईटी की ओर से दलील पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि यह कहना कतई सही नहीं होगा कि एसआईटी ने अपना काम नहीं किया। राज्य अथॉरिटी ने समय पर कदम नहीं उठाया, इस आरोप पर रोहतगी ने जवाब देते हुए कहा कि हिंसा 28 फरवरी को शुरू हुई थी और उसी दिन तत्कालीन सीएम ने मीटिंग बुलाई और फैसला लिया गया कि आर्मी को बुलाया जाए। एसआईटी ने किसी को भी संरक्षण नहीं किया। एसआईटी ने कहा था कि गुजरात दंगे में व्यापक साजिश का कोई साक्ष्य नहीं है। एसआईटी ने दलील दी कि दंगे को राज्य द्वारा प्रायोजित बताने का याची द्वारा जो दावा किया जा रहा है, वह दुर्भावना से प्रेरित है। एसआईटी ने कहा कि राज्य प्रायोजित बताने के पीछे मकसद, मामले को हमेशा गर्म रखना है।
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