मुंबई। शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के प्रयासों को नाकाफी बताते हुए इसे गंभीरता से लेने की सलाह दी है। शिवसेना ने कहा कि लोग पूछ सकते हैं कि अगर विपक्ष आगामी राष्ट्रपति चुनाव में एक मजबूत उम्मीदवार नहीं खड़ा सकता है तो वह आगामी आम चुनाव में एक सक्षम प्रधानमंत्री कैसे देगा।
राष्ट्रपति कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है और अगले राष्ट्रपति के लिए चुनाव 18 जुलाई को होना है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया बुधवार से शुरू हुई है। इसके पहले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 15 जून को विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी जिसमें कांग्रेस, द्रमुक, एनसीपी और समाजवादी पार्टी समेत 17 विपक्षी पार्टियों ने हिस्सा लिया था। इस बैठक में विपक्ष की तरफ से एक संयुक्त उम्मीदवार बनाए जाने पर सहमति बनी थी।
बैठक में सभी नेताओं ने राकांपा प्रमुख शरद पवार से राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना संयुक्त उम्मीदवार बनने का भी आग्रह किया, लेकिन दिग्गज नेता ने बैठक में इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
वहीं अब शिवसेना मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में विपक्ष द्वारा सुझाए गए दोनों नामों को कमजोर उम्मीदवार बताया गया है। संपादकीय में कहा गया है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्ष की तरफ से आने वाले नामों महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी और नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला में कोई इस कद का नहीं है जो इस लड़ाई को जोरदार बना सके।
इसमें आगे कहा गया है कि दूसरी ओर सरकार किसी सर्वमान्य उम्मीदवार के साथ सामने आने की उम्मीद नहीं है। पांच साल पहले, दो-तीन लोगों ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नाम को शॉर्टलिस्ट किया था और इस साल भी ऐसा ही होने की उम्मीद है।
संपादकीय में कहा गया है “पवार नहीं तो कौन? 6 महीने से ही अगर इस सवाल का जवाब ढूढ़ने का काम किया गया होता तो इससे इस चुनाव के लिए विपक्ष की गंभीरता का पता चलता।” इसमें कहा गया है कि “अगर विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव में एक मजबूत उम्मीदवार नहीं उतार सकता है तो कैसे यह 2024 में सक्षम प्रधानमंत्री दे सकेगा। यह सवाल लोगों के दिमाग में आ सकता है।”
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