नई दिल्ली। भ्रष्टाचार के एक मामले में संदिग्ध की टेलीफोन कॉल रिकॉर्ड करने की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय ने सही ठहराया। फोन कॉल रिकॉर्ड करने की अनुमति देने के सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा है कि ‘देश का कानून कुछ निजी हितों पर जनहित के पक्ष में जोर देता है। सीबीआई ने याचिकाकर्ता का फोन कॉल रिकॉर्ड करने के बाद उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने अपने फैसले में कहा है कि गृह मंत्रालय ने जन सुरक्षा की वजहों के मद्देनजर कॉल रिकॉर्ड करने का आदेश दिया। उन्होंने 30 जनवरी, 2018 के गृह मंत्रालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता संतोष कुमार ने मंत्रालय द्वारा सीबीआई को कॉल रिकॉर्ड करने की अनुमति दिए जाने को अपनी निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
साथ ही याचिका में सीबीआई द्वारा रिकॉर्ड किए गए संदेश और कॉल नष्ट करने और इसका इस्तेमाल उसके खिलाफ मुकदमे समेत किसी भी उद्देश्य के लिए नहीं करने का आदेश देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि उनके खिलाफ इस कॉल रिकार्ड का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह गैर कानूनी तरीके से किया है।
न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि कॉल रिकॉर्ड करने का आदेश निष्पक्ष, उचित और कानून के दायरे में दिया गया है। साथ ही कहा है कि टेलीग्राम नियम ‘इंटरसेप्शन के मामले में अत्यधिक गोपनीयता, देखभाल और सावधानी प्रदान करते हैं, क्योंकि यह निजता पर असर डालता है।
अदालत को सूचित किया गया कि इस आदेश के अनुसार केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कथित अपराधों के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की और छापा मारा, जिसके बाद याचिकाकर्ता और कई अन्य लोगों को हिरासत में लिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता को जमानत दे दी गयी और मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया। सीबीआई ने दलील दी कि कॉल रिकॉर्ड जनहित के मद्देनजर वैध, उचित और निष्पक्ष है तथा ऐसा यह पता चलने के बाद किया गया कि वह भ्रष्टाचार और घूसखोरी के संबंध में कुछ लोगों से बातचीत कर रहा था।
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