दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद द्वारा महाराष्ट्र के अमरावती में दिया गया भाषण अनुचित व अरुचिकर था, लेकिन यह इसे आतंकवादी कृत्य नहीं बनाता है।
खालिद को फरवरी 2020 में दिल्ली में दंगे भड़काने की साजिश से संबंधित यूएपीए कानून के तहत दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया था। खालिद ने इस मामले में निचली अदालत की ओर से 24 मार्च को उसकी जमानत अर्जी खारिज करने के फैसले को चुनीती दी है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने कहा, ‘भाषण की भाषा का गलत होना, इसे आतंकवादी कृत्य नहीं बनाता। हम इसे भली-भांति समझते हैं। यदि अभियोजन का मामला इस बात पर आधारित है कि भाषण कितना आक्रामक था, तो यह अपने आप में अपराध नहीं होगा। हम उन्हें (अभियोजन) एक अवसर देंगे।’ पीठ ने कहा कि खालिद का भाषण ‘आपत्तिजनक’ और ‘अरुचिकर’ था और मानहानि के समान हो सकता है लेकिन यह एक आतंकवादी गतिविधि के समान नहीं होगा।’
अदालत खालिद के वकील की ओर से पेश दलीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें खालिद द्वारा 17 फरवरी 2020 को अमरावती में दिए गए भाषण का उल्लेख किया गया। वकील ने इस मामले में संरक्षित गवाहों द्वारा दिए गए बयानों को भी पढ़ा। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई चार जुलाई के लिए सूचीबद्ध की।
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