दिल्ली। मुंडका अग्निकांड में न जाने कितने बेगुनाह लोगों ने अपने चाहने वालों को खो दिया और दर्द भरे आंसुओं का सामना कर रहे हैं। अरुण की तीन बहनें भी अग्निकांड का शिकार हो गयीं, उन्होंने अपनी बहनों को बचाने के लिए अपनी जान भी दांव पर लगा दी आखिरकार वह तीनों बहनों में से किसी को भी नहीं बचा पाए। उन्हें उनकी बहनों का शव भी नहीं मिला है।
मूल रूप से यूपी के अलीगढ़ निवासी अरुण अपने माता-पिता और तीन छोटी बहनों पूनम (19 साल), मधु (21 साल) और प्रीति(24 साल) के साथ प्रवेश नगर कॉलोनी में रहते थे। तीनों बहने आई केयर में काम करती थीं। अरुण बहनों की कंपनी से थोड़ी दूर पर दूसरी कंपनी में नौकरी करते हैं। शुक्रवार को बहन मधु ने मां को फोन किया और बताया कि कंपनी में आग लग गई है, हम फंस गए हैं।
अरुण करीब 5.15 बजे भागते हुए आग वाली जगह पर पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि क्रेन से लोग बाहर निकाले जा रहे हैं। इसी बीच खिड़की पर उनकी बहन मधु दिखाई दी लेकिन पल भर में ही वह फिर तेजी से अंदर चली गई। शायद वह अपनी बाकी दोनों बहनों को बचाने के लिए अंदर चली गई। लेकिन काफी देर तक वह खिड़की के पास फिर नहीं आई। इसके बाद अरुण बगल वाली बिल्डिंग की तरफ भागे। उसकी छत से वह किसी तरह आग वाली बिल्डिंग की छत पर पहुंचे, कि वह छत से जीने के सहारे बिल्डिंग में दाखिल हो जाएंगे और अपनी बहनों को बचा ले आएंगे। लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जीने वाले गेट में ताला लगा हुआ है। वहीं छत पर इतना ज्यादा धुंआ फैल चुका था, कि वहां ज्यादा देर रुकना संभव ही नहीं था। आखिरकार वह फिर लौटकर नीचे आए।
उन्होंने नीचे आकर देखा तो पूरी बिल्डिंग धू-धू करके जल रही थी। बिल्डिंग से लोगों को उतारने के लिए खिड़कियों से बांधी गईं रस्सियां जलकर नीचे गिर चुकी थीं। क्रेन को भी बिल्डिंग से दूर हटा लिया गया था। वह आग की तरफ देखकर चिल्लाते रहे, अरे कोई मेरी बहनों को बचा लो।
अरुण की बहनों के शव का अभी तक कोई अता पता नहीं है। तीन दिन बीत गए उनके घर में चूल्हा नहीं जला है। मां का रो-रो कर बुरा हाल है। अरुण का गला बैठा हुआ है, वह सही से बोल नहीं पा रहे हैं। वह पिता के साथ अस्पताल और थाने का चक्कर लगा रहे हैं। वह चाहते हैं कि बस पता चल जाए कि उनकी बहनें कहां हैं। सोमवार को भी वह पिता राकेश कुमार सिंह के साथ संजय गांधी अस्पताल और मुंडका थाने गए थे।
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