नई दिल्ली। ऑनलाइन गेमिंग को लेकर मोदी सरकार अलर्ट हो गयी है। इन खेलों में सरकार को अब बड़ा ‘खेल’ नजर आने लगा है क्योंकि इसमें दांव पर लगने वाली भारी रकम से सरकार को अब इस बात का अंदेशा सताने लगा है कि ऑनलाइन गेमिंग का इस्तेमाल काले धन को सफेद बनाने (धन शोधन) में और उससे कमाई जाने वाली रकम का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में हो सकता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक इन सरकार ऑनलाइन गेमिंग एवं इससे जुड़ी गतिविधियों को धन शोधन निरोधक कानून (पीएमएलए) की जद में ला सकती है। गेमिंग कंपनियां धन शोधन निरोधक कानून के दायरे में लाई जाती हैं तो उन्हें इस खेल में हिस्सा लेने वाले लोगों से पहले केवाईसी करने के लिए कहना पड़ सकता है।
बता दें इंडिया मोबाइल गेमिंग रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत के टॉप-30 छोटे शहरों में 2020 की तुलना में ऑनलाइन गेम खेलने वाले लोगों की तादाद में 170 फीसद तेजी आई है। कुछ छोटे शहरों में तो ऐसे लोगों की संख्या में 100 से 200 फीसद तक इजाफा हुआ है।
ऑनलाइन गेमिंग में दांव लगाने वालों का पहचान पत्र उपलब्ध नहीं
गेमिंग कंपनियों को धन शोधन निरोधक कानून के दायरे में लाने के पीछे सबसे बड़ी वजह जांच एजेंसियां रकम के आदान-प्रदान का पता नहीं लगा पा रहीं, क्योंकि जो ग्राहक ऑनलाइन गेमिंग में दांव लगा रहे थे, उनके बारे में जानकारी और उनके आधिकारिक पहचान पत्र उपलब्ध ही नहीं थे। इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि इन गेमिंग एप्लिकेशन से लाखों रुपये की रकम की हेराफेरी हुई है, मगर इसमें लिप्त लोगों की जानकारी गेमिंग कंपनियों के पास नहीं थी।
कुछ कंपनियां माल्टा में पंजीकृत
वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि गेमिंग कंपनियों को नियंत्रित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, जो चिंता की बात है। वैसे तो गेमिंग कंपनियां कंपनी मामलों के मंत्रालय में रजिस्टर्ड हैं, मगर इनमें विदेशी निवेश पर कोई रोक नहीं है। सूत्रों ने कहा कि इनमें कुछ कंपनियां माल्टा में पंजीकृत हैं। माल्टा एफएटीएफ की ‘ग्रे’ सूची में आता है।
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