गाजियाबाद। हर साल 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में टीबी के प्रति जागरूकता लाना है। टीबी संक्रमण की शुरुआत में ही मरीज की पहचान होने से उसका उपचार आसान हो जाता है और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी संक्रमण की चपेट में आने का खतरा कम रहता है। घर-घर टीबी रोगी खोजो अभियान की गाजियाबाद जिले में शुरूआत हो चुकी है, 21 दिनों की रिपोर्ट में कोरोना से ज्यादा टीबी के मरीज मिले हैं।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, एक से 21 मार्च तक 12,992 लोगों की जांच कराने पर 185 टीबी संक्रमित मिले हैं। जबकि इसी समय अंतराल में 93,112 लोगों की जांच में कोरोना के 159 मरीज मिले हैं। दो साल में कोरोना से 473 और टीबी से 934 लोगों की मौत हो चुकी है। वर्ष 2020 में 424 और 2021 में 405 लोगों की टीबी से मौत हुईं हैं। तो वहीं, इस चालू वित्त वर्ष में अब तक पांच टीबी संक्रमितों की मौत हो चुकी है। इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि टीबी का संक्रमण तेज गति से फैल रहा है।
जिला क्षय रोग अधिकारी डा. आरके यादव ने बताया कि टीबी को छिपाने का प्रयास किया जाता है। ऐसे में टीबी जानलेवा साबित होने लगती है। अधिकारी की मानें तो सर्वे के तहत डाट्स केंद्रों पर टीबी के सात, इएसआइ केंद्र पर 12, लोनी में 10, मुरादनगर में सात, भोजपुर में 34, विजयनगर में पांच, खोड़ा में सात, साहिबाबाद में छह, पसौंड़ा में 11, चिरौडी में 15, मंडौला में आठ, बम्हैटा में आठ, डासना में 11, संजयनगर में 13, मोदीनगर में नौ और फरीदनगर में 14 मरीज मिले हैं।
पल्मनोलॉजिस्ट डा. आशीष अग्रवाल ने बताया कि टीबी और कोविड-19 दोनों ही संक्रामक रोग हैं। दोनों के वायरस फेफड़ों पर हमला करते हैं। इन दोनों में ही खांसी, बुखार और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण सामने आते हैं। टीबी की इन्क्यूबेशन अवधि ज्यादा होती है, जिससे इस बीमारी के लक्षण बहुत धीरे-धीरे सामने आते हैं। टीबी रोगियों में अन्य बीमारियों जैसे कुपोषण, मधुमेह और एचआइवी की बीमारियां भी होती हैं।
वर्ल्ड टीबी डे का इतिहास
24 मार्च, 1882 को जर्मन फिजिशियन और माइक्रोबायोलॉजिस्ट रॉबर्ट कॉच (Dr. Robert Koch) ने टीबी के बैक्टीरियम यानी जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्लोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) की खोज की थी। उनकी यह खोज आगे चलकर टीबी के निदान और इलाज में बहुत मददगार साबित हुई। इस योगदान के लिए इस जर्मन माइक्रोबायोलॉजिस्ट को 1905 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।
यही वजह है कि हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में पब्लिक अवेयरनेस फैलाने और दुनिया से टीबी के खात्मे की कोशिशों में तेजी लाने के लिए ये दिन मनाता आ रहा है।
अभी भी है किलर डिजीज की कैटेगरी में
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, टीबी अभी भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक किलर डिजीज (Deadly infectious killer disease) में से एक है। हर दिन, लगभग 4100 लोग टीबी से अपनी जान गंवाते हैं और 30,000 के करीब लोग इस रोकथाम और इलाज की जा सकने वाली बीमारी की चपेट में आ जाते हैं, जबकि इसे रोका जा सकता है। जहां एक ओर दुनिया ने वर्ष 2030 को इस जानलेवा बीमारी टीबी के पूर्ण उन्मूलन के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है, वहीं भारत का संकल्प वर्ष 2025 तक इस उद्देश्य को हासिल करने का है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हर दिन औसतन 4000 लोगों की मौत सिर्फ इस जानलेवा बीमारी के चलते हो जाती है। भारत इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित एशियाई देश है।
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