कानपुर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) ने तेलंगाना आयुध निर्माणी मेदक व आर्म्ड वाहन निगम लिमिटेड (एवीएनएल) के सहयोग से सुपरसोनिक प्रक्षेप्य के लिए देश का पहला साफ्ट रिकवरी सिस्टम (एसआरएस) विकसित किया है। इस तकनीकी से 50 मीटर की दूरी में ही ध्वनि की गति से भी तीन गुना गति से चलने वाले 30 मिमी सुपरसोनिक प्रक्षेप्य (मिसाइल या तोप के गोले) की गति को नियंत्रित किया जा सकेगा। इससे सेना को लक्ष्य को सटीक भेदने में आसानी होगी।
प्रो. नचिकेता तिवारी ने बताया कि वर्तमान में थल सेना के बाद मौजूद मिसाइल लांचर या टैंकों में ऐसी प्रणाली नहीं थी, जिससे लक्ष्य को सटीक तौर पर भेदा जा सके। लेकिन अब न्यूनतम क्षति के साथ किसी भी प्रक्षेप्य (प्रोजेक्टाइल) की रिकवरी के साथ ही साफ्ट रिकवरी सिस्टम बनाया गया है। इसकी मदद से अधिक इंटेलीजेंट आयुध टैंकों व मिसाइलों का निर्माण किया जा सकेगा, जिसका प्रभाव ज्यादा होगा और नुकसान बेहद कम होगा। लेफ्टिनेंट जनरल डा. ए. मुखर्जी (सेवानिवृत्त) ने आयुध निर्माणी के साथ मिलकर प्रोजेक्टाइल के लिए साफ्ट रिकवरी सिस्टम बनाने के लिए पूरी टीम को बधाई दी और इसे रक्षा क्षेत्र में मील का पत्थर कहा है।
लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (सेवानिवृत्त) ने भी प्रो. नचिकेता तिवारी और आयुध निर्माणी के जीएम आलोक प्रसाद को बधाई दी। उन्होंने कहा कि अब स्मार्ट युद्धपोत अंतत: स्मार्ट बम का निर्माण करेंगे, जो आर्टिलरी शेल को सटीक लक्ष्य भेदने में वृद्धि करेंगे। उन्होंने बताया कि आर्टिलरी गन फायर शेल में विशाल फैलाव होता है और इसे ऐरिया वेपन्स के रूप में जाना जाता है। नई तकनीक सटीक हमले के साथ ही घातक होगी और दुश्मन की जानमाल की क्षति की संभावना को बढ़ाएगी।
आयुध निर्माणी मेदक के वरिष्ठ महाप्रबंधक (सेवानिवृत्त) भरत सिंह ने कहा कि भविष्य में गोला-बारूद के विकास के लिए साफ्ट रिकवरी सिस्टम का प्रयोग किया जा सकता है। यह एक अनूठी क्षमता है, जिसे आगे चलकर उच्च क्षमता वाले गोला-बारूद तक विस्तारित किया जाना चाहिए।
एसआरएस तकनीकी का परीक्षण तेलंगाना व चेन्नई स्थित दोनों संस्थानों के हेड क्वार्टर में किया गया। साथ ही एसआरएस के लिए टेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित किया। प्रो. तिवारी ने बताया कि पिछले वर्ष आइआइटी कानपुर और आयुध निर्माणी बोर्ड कोलकाता के बीच अनुकूलित मास्टर आफ डिजाइन कार्यक्रम के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए थे, ताकि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए परिष्कृत हथियार और हथियार-प्रणाली डिजाइन की जा सके।
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