नई दिल्ली। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी कृषि कानून वापसी बिल पास हो गया। अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद तीन कृषि कानून खत्म हो जाएंगे। इस बीच पिछले मानसूत्र सत्र में हंगामा करने वाले 12 सांसदों पर भी कार्रवाई की गई हैं, जिसके तहत शीतकालीन सत्र से इन 12 सांसदों को राज्यसभा से निलंबित कर दिए गया है, जिसकी वजह से ये सांसद राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं हो पाएंगे।
सोमवार से संसद का शीतकालानी सत्र शुरू हो गया है। आज से शुरू हुए इस सत्र के 23 दिसंबर तक चलने की संभावना है। शीतकालानी सत्र के पहले दिन विपक्ष के भारी हंगामे के बीच कृषि कानून वापस लिया गया है। केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा और राज्यसभा में कृषि कानून निरसन विधेयक 2021 पारित किया गया। सदन में हंगामे को लेकर राज्यसभा के 12 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है।
कांग्रेस के 6, शिवसेना-टीएमसी के 2-2 और एक सीपीएम और एक सीपीआई सांसद को निलंबित किया गया है। इन सांसदों को सदन के पिछले सत्र में अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किया गया है। इन 12 राज्यसभा सांसदों में विपक्ष के एलामाराम करीम (सीपीएम), फूलो देवी नेतम, छाया वर्मा, आर बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस), बिनॉय विश्वम (सीपीआई), डोला सेन और शांता छेत्री (टीएमसी), प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई (शिवसेना) का नाम शामिल हैं।
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में आरोपी को सुना जाता है, उनके लिए वकील भी उपलब्ध कराए जाते हैं, कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को उनका पक्ष लेने के लिए भेजा जाता है। यहां हमारा पक्ष सुना ही नहीं गया। सीसीटीवी फुटेज देखें तो यह रिकॉर्ड हो गया है कि कैसे पुरुष मार्शल महिला सांसदों को पीट रहे थे। एक तरफ ये सब और दूसरी तरफ आपका फैसला? यह कैसा असंसदीय व्यवहार है?
कांग्रेस की छाया वर्मा ने कहा कि यह निलंबन अनुचित और अन्यायपूर्ण है। अन्य दलों के अन्य सदस्य भी थे जिन्होंने हंगामा किया लेकिन अध्यक्ष ने मुझे निलंबित कर दिया। पीएम मोदी जैसा चाहते हैं वैसा ही कर रहे हैं क्योंकि उनके पास भारी बहुमत है।
कांग्रेस के रिपुन बोरा ने कहा कि यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है; लोकतंत्र और संविधान की हत्या है। हमें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। यह एकतरफा, पक्षपाती, प्रतिशोधी निर्णय है। विपक्षी दलों से परामर्श नहीं लिया गया। हां, हमने पिछले सत्र में विरोध किया था। हमने किसानों, गरीब लोगों के लिए विरोध किया था और सांसदों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम उत्पीड़ित, वंचितों की आवाज उठाएं। हम संसद में आवाज नहीं उठाएंगे तो कहां करेंगे।
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