प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर विचार करे। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिए हैं।
हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, “यूसीसी आज एक आवश्यकता है और अनिवार्य रूप से आवश्यक है। इसे ‘विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक’ नहीं बनाया जा सकता है, जैसा कि 75 साल पहले बीआर अंबेडकर ने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई आशंका और भय के मद्देनजर देखा था।”
न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कहा कि यह समय की मांग है कि संसद एक “एकल परिवार संहिता” के साथ अंतरधार्मिक जोड़ों को “अपराधियों के रूप में शिकार” होने से बचाने के लिए आए। अदालत ने कहा, “अब यह स्थिति आ गई है कि संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए और इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या देश को विवाह और पंजीकरण कानूनों की बहुलता की आवश्यकता है या विवाह के पक्षों को एकल परिवार संहिता की छत्रछाया में लाया जाना चाहिए।”
बता दें, संविधान की धारा 44 के तहत कहा गया है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है।
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