चीन सीमा तक सड़क जरूरी, सेना को 1962 जैसे हालात पर नहीं छोड़ सकते: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। उत्तराखंड में चारधाम के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देना जरूरी है। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक 1962 के हालात में हों, रक्षा से जुड़ी चिंताओं को पर्यावरण के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

केंद्र ने चीन सीमा तक की सड़कों को 10 मीटर चौड़ा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मांगी है। जबकि एक NGO सड़क चौड़ीकरण के खिलाफ है। उसका कहना है कि पहाड़ी इलाके में पेड़ों की कटाई होने से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2020 के आदेश के मुताबिक इन सड़कों की चौड़ाई 5.5 मीटर से अधिक नहीं हो सकती है।

सर्वोच्च अदालत अपने आदेश में संशोधन के अनुरोध वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र का पालन करने के लिए कहा गया है। यह सड़क चीन सीमा तक जाती है। इस रणनीतिक 900 किलोमीटर की परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क सुविधा प्रदान करना है।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वह इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकती कि उत्तराखंड में चीन की सीमा तक जाने वाली रणनीतिक ‘फीडर’ सड़कों के उन्नयन की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक शत्रु है जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है।

याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि सेना ने कभी नहीं कहा कि हम सड़कों को चौड़ा करना चाहते हैं। राजनीतिक सत्ता में कोई उच्च व्यक्ति चार धाम यात्रा पर राजमार्ग चाहता था। ऐसी स्थिति में सेना एक अनिच्छुक भागीदार बन गई। इस साल विस्तारित मानूसन के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन से पहाड़ों में क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ सबसे नए हैं और यह सड़कों के निर्माण के लिए कतई उपयुक्त नहीं हैं। 2013 में केदारनाथ में बादल फटा था, अदालत ने इस पर संज्ञान लिया था और अलकनंदा और भागीरथी पर बन रही 24 जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी।

इस पर अदालत ने कहा कि दूसरा देश तो लगातार निर्माण कर रहा है। क्या उन्हें पर्यावरण की चिंता नहीं है क्यों वहां की न्यायपालिका ने उन्हें नहीं रोका है। न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार ने बताया है कि वह चीनी सीमा तक सैन्य उपकरण, साजो-सामान ले जाने और आवाजाही के लिए यह 900 किलोमीटर लंबी सड़क बना रही है। ऐसे में हम कुछ नहीं कर सकते, यदि यह सड़क पर्यटन के लिए होती तो हम इस पर कड़े पर्यावरणीय प्रतिबंध लगाते।

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