इस्लामाबाद। वैश्विक वित्तीय निगरानी संस्था फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में ही रखने का फ़ैसला किया है। इसके साथ ही पाकिस्तान के अहम सहयोगी तुर्की को भी इस लिस्ट में डाल दिया गया है। पाकिस्तान और तुर्की के खिलाफ इस ऐक्शन से भारत को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है जो आतंकी हमलों से जूझ रहा है।
एफएटीएफ ने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तीन दिवसीय पूर्ण बैठक बुलाई थी। गुरुवार रात पेरिस में FATF की बैठक के बाद प्रेसिडेंट मार्कस प्लीयर ने कहा- पाकिस्तान को हम गहन निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में रख रहे हैं। उसने 34 में से 30 शर्तें पूरी की हैं। चार बेहद महत्वपूर्ण शर्तें हैं, इन पर काम किया जाना बाकी है। FATF ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देने वाले तुर्की को भी ग्रे लिस्ट में रखा है। तुर्की पर आरोप है कि उसने टेरर फाइनेंसिंग पर नजर रखने और कार्रवाई करने में लापरवाही की। उस पर 2019 से ही नजर रखी जा रही थी। उसने दिखावे के तौर पर कुछ कार्रवाई की, लेकिन यह पर्याप्त नहीं थी।
एफएटीएफ ने यह भी कहा कि पाकिस्तान तब तक इस सूची में शामिल रहेगा जब तक कि वह साबित नहीं कर देता कि जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद और जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
एफएटीएफ ने पाकिस्तान के इस आरोप का भी खंडन किया है कि उसने भारत के दबाव में आकर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरकरार रखा है। एफएटीएफ के अध्यक्ष डॉ मार्कस प्लेयर ने कहा कि पाकिस्तान को गंभीरतापूर्वक यह दिखाने की जरूरत है कि प्रतिबंधित आतंकियों और आतंकी संगठनों के खिलाफ जांच और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई ठोस तरीके से चल रही है। उन्होंने कहा कि एफएटीएफ एक तकनीकी निकाय है और हम अपना फैसला आम सहमति से लेते हैं।
पाकिस्तान और तुर्की के लिए आर्थिक मदद मिलना होगा मुश्किल
तुर्की और पाकिस्तान के एफएटीएफ के ग्रे लिस्ट में जाने से उनकी आर्थिक स्थिति का और बेड़ा गर्क होना तय है। तुर्की को पाकिस्तान की तरह से अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। पहले से ही कंगाली के हाल में जी रहे तुर्की की हालत और खराब हो जाएगी। दूसरे देशों से भी तुर्की को आर्थिक मदद मिलना बंद हो सकता है, क्योंकि, कोई भी देश आर्थिक रूप से अस्थिर देश में निवेश करना नहीं चाहता है। वह भी तब जब तुर्की में वर्तमान राष्ट्रपति एर्दोगान के शासन काल में विदेशी निवेश पहले ही रसातल में पहुंच गया है।
उधर, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिवालियेपन की कगार पर है और ग्रे लिस्ट में रखे जाने पर उसकी इकॉनमी को और नुकसान होगा। इसकी वजह से उसे आर्थिक मदद मिलना मुश्किल होगा। इससे जाहिर है उसकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। पाकिस्तान को अगले दो साल में अरबों डॉलर के लोन की सख्त जरूरत है। अगर लोन नहीं मिलता है तो पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी। इमरान खान ने वादा किया था कि वह पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से निकलवाएंगे लेकिन यह वादा खोखला साबित हुआ।
FATF की ग्रे और ब्लैक लिस्ट
- ग्रे लिस्ट : इस लिस्ट में उन देशों को रखा जाता है, जिन पर टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने या इनकी अनदेखी का शक होता है। इन देशों को कार्रवाई करने की सशर्त मोहलत दी जाती है। इसकी मॉनिटरिंग की जाती है। कुल मिलाकर आप इसे ‘वॉर्निंग विद मॉनिटरिंग’ कह सकते हैं।
- नुकसान : ग्रे लिस्ट वाले देशों को किसी भी इंटरनेशनल मॉनेटरी बॉडी या देश से कर्ज लेने के पहले बेहद सख्त शर्तों को पूरा करना पड़ता है। ज्यादातर संस्थाएं कर्ज देने में आनाकानी करती हैं। ट्रेड में भी दिक्कत होती है।
- ब्लैक लिस्ट : जब सबूतों से ये साबित हो जाता है कि किसी देश से टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग हो रही है, और वो इन पर लगाम नहीं कस रहा तो उसे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाता है।
- नुकसान : IMF, वर्ल्ड बैंक या कोई भी फाइनेंशियल बॉडी आर्थिक मदद नहीं देती। मल्टी नेशनल कंपनियां कारोबार समेट लेती हैं। रेटिंग एजेंसीज निगेटिव लिस्ट में डाल देती हैं। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुंच जाती है।
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