जिन्हें भी यूरिन(पेशाब) पास करने में तकलीफ हो या यूरिन में रक्त आए तो तुरंत किसी कैंसर रोग विशेषज्ञ को दिखाएं। ये ब्लैडर कैंसर के प्रारंभिक लक्षण हो सकते हैं। इसके कुछ संकेतों से पहचानकर फर्स्ट स्टेज में ही अलर्ट हुआ जा सकता है। ब्लैडर कैंसर के अधिकतर मामले 60 पार की उम्र के लोगों में देखे जाते हैं लेकिन आधुनिक जीवनशैली युवाओं को भी इसका शिकार बना रही है।
ब्लैडर के कैंसर से सालाना करीब साढ़े चार लाख लोग जान गवां देते हैं। एक रिपोर्ट (Report)के अनुसार 2020 में करीब 18 हज़ार भारतीय इसकी चपेट में आए और 1.3 प्रतिशत लोगों की इस कैंसर (Cancer)से जान चली गई। समय पर अगर इसका इलाज नहीं होता है तो यह कैंसर मौत का कारण भी बन सकता है। यह कैंसर तब शुरू होता है जब मूत्राशय की परत की (यूरोथेलियल कोशिकाएं) कोशिकाएं असामान्य रूप से और नियंत्रण से बाहर होने लगती हैं।
असल में ब्लैडर मानव शरीर में पेट के निचले हिस्से में स्थित एक खोखली थैलीनुमा अंग होता है, जो हमारे यूरिनरी सिस्टम का हिस्सा होता है। किडनी से छनकर आए यूरिन को ब्लैडर ही कलेक्ट करता है और यहीं से यूरिन शरीर के बाहर निकलता है। यह कैंसर तब शुरू होता है जब मूत्राशय की परत की (यूरोथेलियल कोशिकाएं) कोशिकाएं असामान्य रूप से और नियंत्रण से बाहर होने लगती हैं। कोशिकाएं तेज़ी से बढ़ती हैं और कैंसर मूत्राशय की मांसपेशियों में गहराई तक चला जाता है फिर शरीर के विभिन्न भागों में फैल सकता है। यूरोटेलियल कोशिकाएं गुर्दे और यूट्रेस की अंदरूनी परत में भी मौजूद होती हैं। फिर इनका यहां जाने भी खतरा रहता है।
ब्लैडर कैंसर महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में ज्यादा होता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है हालांकि एक स्टडी के अनुसार, यह कैंसर ज्यादातर 60 साल से ऊपर उम्र की पुरुषों को होता है। तंबाकू के अत्यधिक सेवन ने भारतीयों में ब्लैडर कैंसर होने का खतरा बढ़ा दिया है। एडवांस ब्लैडर कैंसर एक गंभीर स्थिति है और अगर तुरंत उपचार कराया जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। ब्लैडर कैंसर उन कैंसर में से है, जिनके एक बार ठीक होने के बाद दोबारा होने की दर बहुत अधिक है। इसलिए एहतियात आवश्यक है।
तीन तरह के होते हैं ब्लैडर कैंसर
यूरोटेलियल कार्सिनोमा
स्क्वॉमस सेल (त्वचा कोशिकाओं) कार्सिनोमा
एडेनोकोर्सिनोमा
लक्षण
आमतौर पर इस कैंसर के लक्षण में पेशाब में खून आता है। कई बार खून के कण बहुत बारीक होते हैं तो उनको माइक्रोस्कोप से भी देखा जाता है। बार बार पेशाब जाना पड़ता है और दर्द होता है। इसके साथ ही पेट और कमर के निचले हिस्से में दर्द भी होता है।
इन लोगों को ज्यादा खतरा
इस कैंसर का सबसे ज्यादा खतरा स्मोक करने वाले, कपड़े रंगने का काम करने वाले, बहुत ज्यादा सैकरीन आर्टिफिशयल स्वीटनर्स का सेवन करने वाले और एल्कोहल सेवन करने वाले लोगों को होता है। जिनके माता-पिता या निकट संबंधियों को ब्लैडर कैंसर है, उनमें इसका खतरा बढ़ जाता है।
ब्लैडर कैंसर का ट्रीटमेंट
कीमोथेरपी- इस प्रक्रिया का इस्तेमाल उन ऊतकों के लिए होता है, जो मूत्राशय की दीवार तक सीमित होते हैं।
रेडिएशन थेरेपी- कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए इस थेरेपी का प्रयोग किया जाता है. जहां सर्जरी का विकल्प नहीं होता, वहां इसको अक्सर प्राथमिकता दी जाती है।
सर्जरी- सर्जरी के जरिए कैंसरग्रस्त ऊतकों को हटाया जा सकता है।
इम्यूनोथेरेपी थेरेपी- इस प्रक्रिया में कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करते हैं।
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