गाजियाबाद। वर्ष 2005 में सतोपंथ चोटी के आरोहण के दौरान हुई दुर्घटना में शहीद हुए पर्वतारोही जवान का पार्थिव शरीर 16 साल बाद उनके पैतृक गांव पहुंचा। मंगलवार सुबह से हीजवान के अंतिम दर्शन के लिए घर के बाहर ग्रामीणों की भारी भीड़ एकत्र हो गई। शहीद जवान को राजकीय सम्मान के साथ मुरादनगर में शमशान घाट पर मुखाग्नि दी गई।
मुरादनगर थाना क्षेत्र के गांव हंसाली के रहने वाले राजकुमार के सबसे छोटे बेटे अमरीश त्यागी का पार्थिव को सबसे पहले हेलीकॉप्टर से गंगोत्री लाया गया। फिर रुड़की कैंट में पहुंचाया गया। यहां से उनका पार्थिव शरीर एक वाहन में रखकर यूपी के गाजियाबाद स्थित मुरादनगर गंगनहर पर मंगलवार सुबह करीब 11 बजे पहुंचा। गंगनहर से फौजी की अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई। यात्रा में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। लोगों ने भारत माता की जय और अमरीश अमर रहे के गगनभेदी नारे लगाए।
अंतिम यात्रा देखकर लोग बिलख पड़े। भाई रामकिशोर त्यागी, विनेश त्यागी और अरविंद त्यागी शव देखकर फफक कर रो पड़े। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि भाई के अब अंतिम के दर्शन हो भी पाएंगे। अंतिम यात्रा गांव हिसाली में पहुंची। यहां परिजनों व ग्रामीणों ने अंतिम दर्शन किए। सेना के जवानों ने शस्त्र उठाकर शहीद जवान को अंतिम सलामी दी। इसके बाद अंतिम संस्कार की सारी प्रक्रियाएं पूरी की गईं।
इससे पहले सोमवार को कलक्ट्रेट परिसर उत्तरकाशी में पार्थिव शरीर को 9 बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने गार्ड आफ आर्नर दिया था तथा सलामी दी। प्रभारी जिलाधिकारी गौरव कुमार, 9 बिहार रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल हर्षदीप सहित आदि अधिकारियों ने नायक अमरीश त्यागी के पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किए और इसके बाद उसे गाजियाबाद भेज दिया गया।
दरअसल मुरादनगर थाना क्षेत्र के गांव हंसाली में रहने वाले राजकुमार के सबसे छोटे बेटे अमरीश त्यागी सेना में कार्यरत थे। अमरीश त्यागी साल 1995 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान उनकी तैनाती लेह लद्दाख में हुई थी। पर्वतारोही फौजी साल 2005 में गंगोत्री हिमालय की सबसे ऊंची चोटी सतोपंथ पर तिरंगा फहराकर वापस लौट रहे थे। लेकिन रास्ते में संतुलन बिगड़ने से हादसा हो गया। इनमें से 3 जवानों के पार्थिव शरीर तो बरामद कर लिए गए थे, लेकिन अमरीश त्यागी का पता नहीं चल पाया था।
तमाम प्रयास के बाद भी जब कोई जानकारी नहीं मिली तो आर्मी हेडक्वार्टर से उनका पूरा सामान उनके परिजनों को दे दिया गया। जिस वक्त वह लापता हुए थे उनकी शादी को महज एक साल ही हुआ था और रिकॉर्ड में उनको मृत दिखाकर उनकी पत्नी और परिजनों को मुआवजा भी दिया गया था।
वहीं इसी माह 12 सितंबर को भारतीय सेना का 25 सदस्यीय एक दल स्वर्णिम विजय वर्ष के मौके पर संतोपंथ चोटी को फतेह करने को उत्तरकाशी से निकला था। हिमालय रेंज के बीच सतोपंथ चोटी है। यह गंगोत्री नेशनल पार्क की दूसरी सबसे बड़ी चोटी है। इसकी ऊंचाई करीब 7075 मीटर है। अभियान के दौरान सेना के दल को 23 सितंबर को हर्षिल नामक जगह के पास बर्फ में दबा पर्वतारोही फौजी का शव मिला। जिसे सेना के जवानों ने गंगोत्री पहुंचाया और पुलिस को सौंपा।
पुलिस और सेना ने जब जानकारी जुटाई तो पता चला कि यह फौजी भी 23 सितंबर 2005 में इसी चोटी पर तिरंगा फहराकर लौट रहा था। तब पैर फिसलने से चार जवान खाई में गिर गए थे। तीन जवानों की लाश उसी वक्त बरामद हो गई थी, जबकि एक लापता था।
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