देश में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं कितनी अच्छी हैं, इस बात का पता इसी से लगता है कि हाल ही में केरल के कोल्लम इलाके में तीन अस्पतालों ने एक गर्भवती का इलाज करने से इनकार कर दिया। 23 वर्षीय गर्भवती अस्पतालों के चक्कर काटती रही और जब बच्चे को जन्म दिया तो पता लगा कि वो कोख में ही मर चुका था। वो बच्चा दुनिया में जरूर आ पाता अगर सही वक्त पर महिला को अस्पताल में भर्ती कर लिया होता। वैसे इसका दूसरा पहलू ये भी है कि अगर घर पर ही सारी सुविधाएं होतीं तो गर्भवती को इलाज के लिए भटकना ही न पड़ता। जी हां, हम बात कर रहे हैं होम बर्थ की, जो सुनने में दकियानूसी लगे लेकिन अब बेहद आधुनिक देश भी इसपर जोर दे रहे हैं।
इन देशों में सबसे ज्यादा महिलाएं घर पर देती हैं शिशु जन्म
वेस्टर्न देशों में नीदरलैंड्स एक ऐसा देश है जहां सबसे अधिक, 30% महिलाएं बच्चे को घर पर जन्म देती हैं। जबकि 60% महिलाएं अस्पताल में भर्ती होतीं और 10% बर्थ क्लीनिक में बच्चे को जन्म देती हैं। अस्पताल में भी केवल वही महिलाएं जाती हैं जिन्हें घर में प्रसव के दौरान कोई परेशानी हुई हो। डच महिलाएं घर में बच्चे को जन्म देने की परंपरा में इतना विश्वास रखती हैं कि वे बेहोशी की दवा लिए बिना ही बच्चे को जन्म देती हैं। हालांकि नीदरलैंड्स में होम बर्थ के पीछे एक कारण यह भी है कि वहां हेल्थ इंश्योरेंस में बर्थ का खर्च नहीं जोड़ा जाता जबतक कि कोई मेडिकल प्रक्रिया नहीं की गई हो। एक कारण यह भी है कि नीदरलैंड्स में हॉस्पिटल बर्थ के लिए करीब 3 लाख 40 हजार रुपये खर्च होते हैं जबकि होम बर्थ में 3 लाख 10 हजार तक का खर्च आता है। गंभीर हालातों में घर पर जन्म देने की प्रक्रिया खतरनाक हो सकती है, सिर्फ तभी वे इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी लेते हैं। नीदरलैंड्स के अलावा यूके, कनाडा, डेनमार्क, अमेरिका और यूरोपियन देशों में भी ज्यादातर महिलाएं होम बर्थ कराती हैं।
ये हैं नेचुरल चाइल्ड बर्थ के तरीके, जिन्हें अपना रही दुनिया
वॉटर बर्थ : पानी के टब में बच्चे को जन्म देने के तरीके को वॉटर बर्थ कहते हैं। ये काफी पुरानी तकनीक है जिसे सबसे पहले मिस्र और ग्रीक के लोग इस्तेमाल करते थे। पानी में रहने से महिला को कम दर्द होता है और लेबर में कम समय लगता है। यही वजह है कि आज अमेरिका में ज्यादातर महिलाएं इसे अपना रही हैं। भारत में भी कई हॉस्पिटल्स ने वॉटर बर्थ सर्विस देना शुरू कर दिया है। बॉलीवुड अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ने पिछले साल ही अपनी कोच के साथ वॉटर बर्थ की फोटो शेयर की थी।
ब्रेडले बर्थ : डिलीवरी के समय महिला के साथ उनका पार्टनर भी मौजूद रहता है और लगातार मोटिवेट करता है इसे ब्रेडले बर्थ कहते हैं। महिला को लेबर में मदद करने के लिए पार्टनर साथ मिलकर गहरी सांस लेने की एक्सरसाइज करते हैं। इसके लिए कपल्स 10 से 12 हफ्ते की क्लास करते हैं जिसमें महिला को डाइट से लेकर एक्सरसाइज सिखाई जाती है। डिलीवरी के समय मिडवाइफ (दाई) या चाइल्डबर्थ कोच उनके साथ रहती है।
लमज़े बर्थ : इस प्रक्रिया में महिला को सांस कंट्रोल करने की तकनीक सिखाई जाती है, जो उसे डिलीवरी के समय काम आ सके। उन्हें कई तरह की पोजिशन सिखाई जाती है ताकि लेबर में परेशानी न हो और बच्चा आसानी से बाहर आ सके। डिलीवरी के समय वे कई बार अपनी पोजिशन बदलती हैं। यहां भी महिला के साथ मिडवाइफ या कोच साथ होती है।
भारत में होम बर्थ क्यों मुमकिन नहीं
लखनऊ के लोक बंधु राज नारायण हॉस्पिटल की निदेशक और गायनाकोलॉजिस्ट डॉ दीपा त्यागी बताती हैं कि भारत में होम बर्थ सफल न होने के पीछे पांच बड़े कारण हैं।
- विदेशों के मुकाबले यहां जनसंख्या अधिक है और मिडवाइफ व हेल्थकेयर वर्कर्स की संख्या कम, इसमें भी स्किल्ड मिडवाइफ की संख्या कम है।
- होम बर्थ में एक गर्भवती के लिए सबसे जरूरी है हाइजीन, न्यूट्रिशन और आराम जो उसे घर पर नहीं मिलता।
- सरकार का जोर इस समय इंस्टीट्यूशनल बर्थ पर है ताकि डिलीवरी के बाद मां और नवजात की मृत्यु दर में कमी लाई जा सके। गांव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर में महिला डिलीवरी कराने जाती है तो वहां पर्याप्त सुविधा नहीं होती, ऐसे में अगर होम बर्थ में कोई केस बिगड़ता भी है तो उसका इलाज प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर मुमकिन नहीं और अस्पताल ले जाने में भी काफी समय लग जाएगा। इस सब में महिला की हालत और बिगड़ जाती है।
- होम बर्थ के दौरान हाइजीन का ख्याल न रखने पर बच्चे इंफेक्शन का शिकार होते हैं जो उनके जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता हैं।
- भारत में गरीब तबके की महिलाओं के लिए होम बर्थ इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि उन्हें डिलीवरी के पहले और बाद की सही डाइट समय रहते नहीं मिल पाती।
- एक कारण ये भी है कि मिडल क्लास और अपर मिडिल क्लास परिवारों में बहुत सी महिलाएं दर्दरहित डिलीवरी की डिमांड करती हैं, 12 से 14% महिलाएं खुद वजाइनल डिलीवरी से कतराती हैं।
देश में 30% महिलाएं कराती हैं होम बर्थ
नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि भारत में 70% डिलीवरी अस्पतालों में हो रही है, वहीं 30% महिलाएं अभी भी घर में बच्चों को जन्म दे रही हैं। हालांकि कोरोना महामारी के दौर में घर में डिलीवरी कराने वाली की संख्या बढ़ी। कोविड से खुद को बचाने के लिए महिलाओं ने अस्पताल से दूरी बनाई थी ताकि खुद और बच्चे को सुरक्षित रख सके। स्वास्थ्य मंत्रालय ने महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान जैसे कई अभियान चलाए ताकि महिलाएं पैसे की चिंता करे बिना स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ले सकें, लेकिन इसके बाद भी कई महिलाओं के लिए अस्पताल पहुंचना ही सबसे बड़ी जंग होती है और वे इन सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं।
हर एक मिनट में जा रही एक बच्चे की जान
देश में हर वर्ष 250 लाख बच्चे जन्म लेते हैं लेकिन अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण हर एक मिनट में एक बच्चा जान गंवाता है। यूनिसिफ इंडिया की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 250 लाख में से 40% नवजात जन्म के 24 घंटे के अंदर मर जाते हैं, जबकि 35% बच्चे जन्म लेने से पहले मां की कोख में जान गंवा देते हैं, 33% बच्चे जन्म लेने के बाद इंफेक्शन के कारण मर जाते हैं। जन्म के दौरान और तुरंत बाद होने वाली मृत्यु का सबसे बड़ा कारण सही समय पर इलाज न मिलना है। क्योंकि भारत में 65% जनसंख्या गांव में बसती है और ज्यादातर गांव में आज भी अच्छे अस्पताल नहीं है, अगर किसी गर्भवती को लेबर पेन शुरू होता तो उसे शहर या पास के अस्पताल पहुंचाने तक में ही उसकी और बच्चे की जान पर आ पड़ती है। वहीं कई गांव में आज भी महिलाएं घर में ही बच्चे को जन्म देती है। दाई की मदद से डिलीवरी कराने की प्रथा को देश में काफी पुरानी है लेकिन यह सिर्फ उन्हीं केस में सही है यहां जच्चा और बच्चा पहले से स्वस्थ हैं, प्रेगनेंसी के दौरान मां या बच्चे में किसी तरह की परेशानी देखी गई हो तो उनके लिए घर पर बच्चे को जन्म देना खतरनाक साबित हो सकता है।
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