करीब 10 साल पहले की बात है। मैं कार से ट्रैवल कर रही थी, रास्ते में एक लड़की दिखी जो डस्टबिन से कुछ उठा रही थी। गाड़ी धीरे की तो पता चला कि वह कूड़े के ढेर से इस्तेमाल किया हुआ पैड निकाल रही थी। उसे ऐसा करते देख मैं खुद को रोक नहीं पाई। मैंने गाड़ी रोकी और उससे पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रही है? उस लड़की ने बताया कि मैं इसे धोकर इस्तेमाल करूंगी। उस घटना ने मुझे झकझोर दिया। उस दिन के बाद से मैंने तय किया कि अब इन लड़कियों और महिलाओं के लिए अपनी जिंदगी खपा देनी है। तब से मैं लगातार गरीब लड़कियों और महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड और पैंटी बांट रही हूं। अब तक लाखों पैड मैं बांट चुकी हूं।
सूरत की रहने वाली 65 साल की मीना मेहता जब यह दास्तान बता रही थीं तब काफी भावुक थीं। वे कहती हैं कि इससे बढ़कर नेक काम कुछ भी नहीं हो सकता है। यह काम अब मेरी जिंदगी का मकसद बन गया है और अंतिम सांस तक इस काम को करते रहना है। मीना मेहता को पैड वाली दादी के नाम से जाना जाता है। पीएम नरेंद्र मोदी और बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार भी मीना के मुरीद हैं। वे उनके काम की तारीफ कर चुके हैं।
मीना कहती हैं कि मैं शुरुआत से ही समाजसेवा के काम से जुड़ी हूं। करीब 25 साल की उम्र से ही मैं अलग-अलग जगहों पर सोशल वर्क करती रही हूं। मुझे इन्फोसिस की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति के काम से काफी प्रेरणा मिली है। साल 2004 में जब सुनामी आई थी तब सुधा मूर्ति ने औरतों के बीच 4 ट्रक सैनिटरी पैड्स बांटे थे। उन्होंने सोचा था कि लोग पीड़ितों को खाना और अन्य चीजें दे रहे हैं, लेकिन उन बेघर महिलाओं का क्या जिन्हें माहवारी हो रही होगी? उनके इन्हीं शब्दों से मीना को काम करने की प्रेरणा मिली।
स्कूली छात्राओं और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली महिलाओं की पैड वाली दादी
मीना बताती हैं कि जब मैंने इस काम को शुरू किया तो हमें पता चला कि स्कूली छात्राओं और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली महिलाओं को सबसे ज्यादा पैड की जरूरत है। कई बच्चियों के पास तो पैड नहीं होने की वजह से उन्हें पढ़ाई के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। इसी तरह झुग्गी-झोपड़ी और स्लम एरिया में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों के पास इतने पैसे ही नहीं होते कि वे अपने लिए पैड्स खरीद सकें।
एक दर्दनाक वाकये को याद करते हुए मीना बताती हैं कि सूरत के एक गांव की एक लड़की के बारे में मुझे पता चला जिसकी मौत सैनिटरी पैड की कमी की वजह से हुई थी। उस लड़की ने पीरियड के दौरान कपड़े का इस्तेमाल किया था। गलती से कपड़े का एक टुकड़ा उसकी वजाइना के अंदर ही रह गया था। तब उसे इसकी जानकारी नहीं हुई। बाद में यही कपड़ा उसकी मौत का कारण बना। दरअसल उस कपड़े की वजह से उसकी वजाइना में इन्फेक्शन हो गया था। इसलिए मैंने तय किया कि ऐसे लोगों तक हर हाल में हमें पहुंचना है और मदद पहुंचानी है।
सिर्फ सैनिटरी पैड नहीं, पैंटी भी उतनी ही जरूरी है
मीना कहती हैं कि शुरुआत में हमारा फोकस पैड्स को लेकर रहा, लेकिन बाद में पता चला कि पैड के साथ ही पैंटी भी बहुत जरूरी है। दरअसल एक स्कूल में जब हम पैड बांट रहे थे तो एक लड़की ने मुझसे कहा कि उसके पास अंडरवियर तो है ही नहीं। इसी तरह कुछ और लड़कियों ने बताया कि उनके पूरे घर में सिर्फ दो से तीन पैंटी है, जो आपस में सब इस्तेमाल करते हैं। तब मुझे लगा कि पैड के साथ ही पैंटी का होना भी उतना ही जरूरी है। बिना पैंटी के पैड का कोई मतलब नहीं है। तभी से वे पैड के साथ ही पैंटी भी बांट रही हैं।
वे कहती हैं कि जब मैं अक्षय कुमार से मिली थी तो उनसे भी कहा था कि आपने पैड का प्रचार तो कर दिया, लोगों को जागरूक कर दिया, लेकिन इससे कहीं महत्वपूर्ण पैंटी का होना भी है।
इसके लिए मीना ने एक मैजिकल किट तैयार की है। इसमें 8 पैड का एक पैकेट, 2 अंडरवियर, 4 शैंपू के पाउच और 1 साबुन होता है। मीना दादी ये किट हर महीने लड़कियों में बांटती हैं। इतना ही नही लड़कियों को हाइजीन के साथ पोषण भी मिलता रहे, इसके लिए वे उन्हें चने और खजूर का एक पैकेट भी देती हैं।
देश-विदेश से लोग कर रहे हैं मीना की मदद
मीना कहती हैं कि जब कुछ सालों तक हमने काम किया तो हमें रियलाइज हुआ कि अगर इस काम को बड़े लेवल पर और लंबे वक्त तक करना है तो हमें इसे एक संस्था का रूप देना होगा, क्योंकि हम अकेले इस काम को बड़े लेवल पर नहीं ले जा सकते। यह समस्या बड़ी है और इसके लिए समाज के हर वर्ग के लोगों को मदद के लिए आना होगा। इसके बाद हमने 2017 में मानुनी फाउंडेशन के नाम से अपनी संस्था रजिस्टर कराई और प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया की मदद ली। इसके बाद हमारे काम का दायरा बढ़ गया। देश-दुनियाभर से हमारे पास फंडिंग आने लगी। लंदन, अफ्रीका, हांगकांग से कई लोग इस अभियान से जुड़े और पैसे डोनेट किए।
मीना के जन्मदिन के मौके पर सुधा मूर्ति ने उन्हें 2 लाख के पैड भेजे थे। वहीं फिल्म पैडमैन के दौरान अक्षय कुमार ने भी मीना को 2 लाख रुपए डोनेट किए थे। इस साल HDFC बैंक की तरफ से भी उन्हें 9 लाख रुपए की फंडिंग मिली है। लड़कियों और औरतों में पीरियड्स को लेकर जागरूकता बढ़े इसके लिए मीना ने झुग्गी-झोपड़ी में जाकर सारी औरतों को पैडमैन फिल्म दिखाई थी। इसके लिए उन्होंने सारी लड़कियों और औरतों को लाल कपड़े में बुलाया था।
सैनिटरी पैड बांटने के साथ ही मीना लड़कियों को पैड पहनने का तरीका भी बताती हैं। वे लड़कियों को बताती हैं कि हर 6 घंटे में इसे चेंज करना है और फिर इसे डिस्पोज करना है। इसके साथ ही वे महिलाओं को पीरियड को लेकर भी जागरूक कर रही हैं।
गरीबों को और अस्पतालों में मुफ्त भोजन भी बांट रहीं
मीना मेहता का काम यहीं तक नही रुका। लॉकडाउन में मीना और उनके पति ने कुपोषण से पीड़ित लोगों के लिए मुफ्त में खाना बांटने का भी काम शुरू किया। मार्च 2020 से वे हर दिन स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों के लिए घर पर खाना बनाने का काम कर रहे हैं।
वे कहती हैं कि कोविड के बाद अस्पतालों में भर्ती मरीज के साथ ही उनके परिजनों को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा है। इसको देखते हुए हमने अस्पतालों में भी लोगों तक मुफ्त भोजन पहुंचाना शुरू किया। मीना और उनके पति खुद ही खाना बनाते हैं। वे 250 ग्राम के 300 पैकेट्स तैयार करते हैं और उनकी संस्था के लोग इसे डिस्ट्रीब्यूट कर देते हैं। वे कहती हैं कि खाना बनाते और पैक करते वक्त इस बात का हम ख्याल रखते हैं कि वह पूरी तरह से शुद्ध और पौष्टिक हो।
मीना चाहती हैं कि हर कोई मीना मेहता बने। वे कहती हैं कि हर इंसान कम से कम एक गरीब लड़की, जिसके पास पैड-पैंटी खरीदने के पैसे नहीं है, उसे हर महीने पैड और पैंटी बांटे। इससे औरतों को पीरियड्स के समय होने वाली परेशानी और बीमारी से निजात मिलेगी।
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