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एक तरफ जहां उच्च शिक्षा ग्रहण कर विदेश में बसने का ख्वाब कई लोग देखते हैं तो दूसरी तरफ जापान की एक कंपनी में ढाई लाख रुपये की नौकरी करने वाली एक जल विज्ञानी ने वापस भारत में ही बसने का निर्णय लिया है। इसकी वजह भूजल की बिगड़ती सेहत को लेकर उनकी चिता है। वह चाहती हैं कि जो कार्य वह जापान के लिए करतीं वह कार्य अब अपने देश के लिए करें, जिससे कि भारतीयों को जल संकट से न जूझना पड़े। नालों और नदियों के पानी से प्रदूषण कम हो सके। ऐसे बदला विचार: मूलत: दिल्ली के मुखर्जी नगर निवासी जल विज्ञानी सोनिया मुराडिया शर्मा ने बताया कि फरवरी 2020 में कंपनी की ओर से उत्पाद की मार्केट रिसर्च के लिए स्वदेश लौटीं तो सिद्धार्थ विहार में रहने लगीं। यहां हरनंदी की दुर्दशा देख उनको बुरा लगा और सोसायटी में जो पानी लोग पी रहे थे, वह नमकीन था।
पानी में टीडीएस की मात्रा 1,600 थी, जो कि 500 तक होनी चाहिए। जल विज्ञानी होने के कारण उनको यह समझने में देर नहीं लगी कि इसकी वजह अत्यधिक भूजल दोहन होना है। यदि ये सिलसिला जारी रहा तो आने वाले कुछ सालों में स्थिति भयावह होगी। ऐसा न हो, इसके लिए उन्होंने भारत में ही रहकर भारत सरकार और जिला प्रशासन की मदद से काम करने का निर्णय लिया है। वर्तमान में वह जिला भूगर्भ जल प्रबंधन परिषद के साथ मिलकर काम कर रही हैं। अपने सुझाव जिला प्रशासन से साझा करती हैं। सोसायटी के निवासियों को सुझाव दिया है कि गंगाजल का इस्तेमाल पीने के लिए करें, अन्य कार्य में उपयोग किए जा चुके गंगाजल का इस्तेमाल करें। इससे पानी की बचत होगी और दूसरों को भी गंगाजल पीने को मिलेगा। पानी को शोधित करने के लिए सोसायटी में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की तैयारी है। बनाई खुद की कंसल्टेंसी फर्म, टेक्नालाजी की हैं विशेषज्ञ:
सोनिया ने बताया कि उन्होंने ईको-9 साल्यूशन प्रोवाइडर नाम से कंसल्टेंसी फर्म बनाई है। घरों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले पानी को शोधित करने के साथ ही सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए वह टेक्नालाजी मुहैया कराएंगी। जिससे कि सोसायटी और औद्योगिक इकाइयों में ही पानी को शोधित किया जा सके। शोधित पानी का इस्तेमाल औद्योगिक इकाइयों में भी किया जा सकेगा और इसे नाले में डाला जाएगा तो हरनंदी नदी भी स्वच्छ होगी। हरनंदी नदी स्वच्छ होगी तो यमुना और गंगा में भी हरनंदी नदी से गंदा पानी नहीं जाएगा।
10 साल तक रहीं जापान में: सोनिया ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पर्यावरण विज्ञान में परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद स्कालरशिप मिली तो उन्होंने 2010 में जल शोधन में पीएचडी करने के लिए जापान के शिजुओका विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। 2013 तक यहां पर पढ़ाई की। इसके बाद 2015 से 2017 तक जापान की क्यूसू विश्वविद्यालय में सालिड वेस्ट मैनेजमेंट पर तीन साल काम किया। 2017 में ही उन्होंने जापान में वाटर सेविग नल बनाने वाली एक कंपनी में नौकरी शुरू की और 2020 तक कंपनी में कार्यरत रहीं। इस कंपनी के लिए उन्होंने ऐसा उत्पाद तैयार किया, जिससे कि हाथ धुलने में साबुन का इस्तेमाल न करना पड़े, पानी की भी बचत हो। साभार-दैनिक जागरण
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