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एक अफगान लड़की की दुनिया के नाम चिट्ठी:दरवाजे पर दस्तक होते ही सहम जाती हूं, ऐसा लगता है कि कहीं तालिबानी मेरी सहेली की तरह मुझे भी न उठा ले जाएं

by हमारा गाज़ियाबाद ब्यूरो
September 2, 2021
in अंतर्राष्ट्रीय, एनसीआर, ख़बरें राज्यों से, घटना, नागरिक मुद्दे, राष्ट्रीय, विशेष रिपोर्ट
एक अफगान लड़की की दुनिया के नाम चिट्ठी:दरवाजे पर दस्तक होते ही सहम जाती हूं, ऐसा लगता है कि कहीं तालिबानी मेरी सहेली की तरह मुझे भी न उठा ले जाएं
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पढ़िये दैनिक भास्कर की ये खास खबर….

अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई के बाद लाखों लोगों की आस टूट चुकी है। जिन लोगों ने अफगानिस्तान में अपने बेहतर कल की कल्पना की थी, सपने संजोए थे, अब सब बिखर गए हैं। फरयाब प्रांत की रहने वाली जाहिदा भी उनमें से एक है। अभी वह सेकेंड ईयर में है। आगे पढ़ना चाहती है, अपने देश के लिए कुछ करना चाहती है, लेकिन तालिबान शासन के बाद उसके सारे ख्वाब टूट कर चूर हो गए हैं। उसने दुनिया के नाम अपनी आपबीती को लेकर एक खत साझा किया है, जिसे हम हूबहू आपके साथ शेयर कर रहे हैं…

“मेरा नाम जाहिदा है और उम्र 19 साल। मैं अफगानिस्तान के फरयाब प्रांत के एक शहर में रहती हूं। दो साल पहले स्कूल की पढ़ाई पूरी कर मैंने काबुल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, लेकिन अब मुझे नहीं पता कि मैं वापस यूनिवर्सिटी जा पाऊंगी या नहीं। अब मेरे शहर और मुल्क में तालिबान का कब्जा है।

मेरी एक हमउम्र दोस्त है। बहुत सुंदर और हंसमुख। मुझे पता चला है कि उसे तालिबानी उठा ले गए हैं। एक तालिबान नेता के बेटे से उसकी शादी करवा दी गई है। उससे मेरी आखिरी बातचीत 3 महीने पहले हुई थी। मुझे नहीं मालूम कि अब वह किस हाल में है।

हम दोनों पढ़ाई पूरी कर अफगान लोगों के लिए कुछ करने के ख्वाब देखा करते थे। वो टीचर बनना चाहती थी। बच्चों को पढ़ाना उसे अच्छा लगता था, लेकिन अब उस पर क्या बीत रही होगी, मैं नहीं जानती।
पता नहीं अब हम दोनों कभी मिल भी पाएंगे या नहीं। जहां मैं रहती हूं ये एक खूबसूरत इलाका है, लेकिन यहां सुरक्षा नहीं है। हर वक्त तालिबान का साया है। जब से ये शहर तालिबान के कब्जे में आया है, लोगों में दहशत है। डर की वजह से कोई तालिबान के खिलाफ कुछ नहीं बोलता है। घर की खिड़की से बाहर झांकने की हिम्मत भी नहीं होती है। आते-जाते तालिबान लड़ाके खौफनाक साए की तरह लगते हैं।

हमारे शहर में तालिबान तीन महीने पहले ही आ गए थे। जिस दिन तालिबान ने हमारे शहर पर कब्जा किया, मैं डर से सहम गई और बहुत रोई थी। तब मुझे उम्मीद थी कि सरकार तालिबान से लड़ेगी और उसे पीछे हटने को मजबूर करेगी,लेकिन तालिबानी एक के बाद एक इलाकों पर कब्जा करते गए और हमारी उम्मीदें टूटती गईं। मैंने सुना है कि तालिबानी पढ़ी-लिखी लड़कियों से शादी करना चाहते हैं। वो डॉक्टर और टीचर को अपनी बीवी बनाना चाहते हैं, ताकि उनसे अपने बच्चे पैदा कर सकें।

कुछ तालिबान लड़ाकों की पहले से बीवियां हैं, लेकिन वो फिर भी खूबसूरत लड़कियों से शादी करना चाहते हैं। मुझे डर है कि कहीं मेरी दोस्त की तरह वो मुझे भी उठा ना ले जाएं। मैं हमेशा इसी दहशत में रहती हूं। तालिबान के कुछ लड़ाकों के यहां अपने घर हैं और कुछ पाकिस्तान से आए हैं। वो यहां सरकारी इमारतों में रह रहे हैं। अपनी हर जरूरत के लिए तालिबानी फिलहाल यहां के बाशिंदों पर निर्भर हैं। वो हर घर से खाने -पीने की चीजें और पैसे ले रहे हैं।

कुछ दिन पहले तालिबान हमारे घर भी आए थे। हमसे 30-40 लोगों के लिए खाना बनवाया। हमें उनके लिए काबुली पुलाव बनाना पड़ा, जिसके लिए मीट होना जरूरी होता है। वो यहां के लोगों के घरों में जाकर अपने लिए जबरदस्ती खाना बनवा रहे हैं। कोई उन्हें मना नहीं कर सकता है। हर घर का नंबर आता है। पिछली बार जब तालिबान का शासन था, तब मेरी मां जवान थीं। उन्होंने कई तरह की पाबंदियां देखी हैं, लेकिन वो बहुत हिम्मती महिला हैं। वो एक टीचर बनीं, नौकरी की और घर चलाया। अब तालिबान हर टीचर से पैसे ले रहा है। मेरी मां से भी एक हजार अफगानी पैसे लिए गए हैं। उन्होंने कहा है कि वो आगे भी पैसे लेते रहेंगे।

तालिबानी कह रहे हैं कि वो इस बार बदले हुए हैं, लेकिन हमें उन पर भरोसा नहीं है। मेरी मां ने तालिबान का वो खौफनाक दौर देखा है। वो जो कहानियां हमें सुनाती थीं, मैं तब कांप जाती थी,पर अब एक झटके में मैं खुद उसी दौर में आ गई हूं। मेरे सारे ख्वाब चकनाचूर हो गए हैं। मैं आखें बंद करती हूं तो अंधेरा दिखाई देता है, आंखें खोलती हूं ,तब भी अंधेरा ही दिखाई देता है।

हम उज्बेक लोग हैं। हमारे शहर में ताजिक लोग भी रहते हैं और गिने -चुने परिवार हजारा हैं। हजारा समुदाय पर तालिबान ने बहुत जुल्म किया था। कुछ हजारा परिवार शहर छोड़कर काबुल चले गए हैं। तालिबान लोगों में अधिकतर पश्तो हैं और वो दूसरे समुदाय के लोगों पर जुल्म करते हैं। हमें पता चला है कि कई इलाकों में उज्बेक और ताजिक लोगों को निशाना बनाया गया है।

मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, अपने देश के लिए कुछ करना चाहती हूं, लेकिन मुझे नहीं पता कि अब मैं आगे पढ़ पाउंगीं या नहीं। मेरी एक बहन हिंदुस्तान में पढ़ रही है। वह पढ़ाई पूरी करके वापस अफगानिस्तान लौटना चाहती थी। तालिबान के कब्जे के बाद अब उसने मुल्क वापस लौटने का अपना फैसला बदल दिया है।

मैं अफगानिस्तान को बहुत प्यार करती हूं। मैं कभी देश से बाहर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि मैं सोचती थी कि मेरे देश को मेरी जरूरत है, लेकिन अब अगर मुझे बाहर जाने का मौका मिला तो मैं भी चली जाऊंगीं। तालिबान के शासन ने हमारी जिंदगी को बदल दिया है। मैं अपनी जितनी भी दोस्तों को जानती हूं वो सब डरी हुई हैं। दरवाजे पर दस्तक होती है तो मेरा दिल दहल जाता है। ऐसे लगता है कि कहीं तालिबान न हो, कहीं वो मुझे उठाने न आए हों।

इस कहानी में सब कुछ सच है, सिवा मेरे नाम और शहर के। तालिबान के खौफ के कारण मुझे अपना नाम -पता छुपाना पड़ रहा है। मंगलवार को तालिबान लड़ाके फिर हमारे घर आए थे। जान बचाने के लिए हमने अपना घर और शहर छोड़ दिया है। अब हम एक नए ठिकाने पर हैं, लेकिन कुछ पता नहीं कि हम कब तक सुरक्षित रह पाएंगे। “

(इस अफगानी लड़की की हर बात सच्ची है। उसका हर दर्द सच्चा है। उसकी हर आशंका भी सही है, लेकिन न इस लड़की का नाम सही है और न अफगानिस्तान में उसका पता। ऐसा क्यों? आप सभी इस सच से भी वाकिफ हैं कि ऐसा क्यों? जाहिदा ने अपनी चिट्ठी दैनिक भास्कर की रिपोर्टर पूनम कौशल से साझा की है) साभार-दैनिक भास्कर

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