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इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) 12 अगस्त को अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट लॉन्च करने जा रहा है। इस सैटेलाइट को ‘आई इन द स्काय’ यानी आसमान में ‘आंख’ कहा जा रहा है। कोरोना महामारी की वजह से थमी इसरो की गतिविधियों को इस लॉन्चिंग से रफ्तार मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
इस सैटेलाइट (EOS-03) को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-F10 (GSLV) से 12 अगस्त की सुबह 5ः43 बजे लॉन्च किया जाएगा। फाइनल लॉन्च मौसम की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
यह आई इन द स्काय सैटेलाइट क्या है? यह क्या काम करेगा? कैसे लॉन्च होगा? इससे क्या फायदा होगा? इस लॉन्च के बारे में वह सब कुछ जो आपके लिए जानना जरूरी है-
क्या है अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट?
- इस सैटेलाइट को जियो इमेजिंग सैटेलाइट-1 (GISAT-1) भी कहा जा रहा है। इसके जरिए भारत के साथ-साथ चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर भी नजर रखी जा सकेगी। इस वजह से इस सैटेलाइट को ‘आई इन द स्काय’ भी कहा जा रहा है।
- अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-03) पूरे देश की रोज 4-5 तस्वीरें भेजेगा। इस सैटेलाइट की मदद से जलाशयों, फसलों, तूफान, बाढ़ और फॉरेस्ट कवर में होने वाले बदलावों की रियल-टाइम मॉनिटरिंग संभव होगी।
- यह सैटेलाइट धरती से 36 हजार किमी ऊपर स्थापित होने के बाद एडवांस ‘आई इन द स्काय’, यानी आसमान में इसरो की आंख के तौर पर काम करेगा। यह सैटेलाइट पृथ्वी के रोटेशन के साथ सिंक होगा, जिससे ऐसा लगेगा कि यह एक जगह स्थिर है।
- यह बड़े इलाके की रियल-टाइम इन्फॉर्मेशन देने में सक्षम है। यह बेहद खास है, क्योंकि अन्य रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स लोअर ऑर्बिट्स में हैं और वह नियमित इंटरवल के बाद एक स्पॉट पर लौटते हैं। इसके मुकाबले EOS-03 रोज चार-पांच बार देश की तस्वीर खींचेगा और विभिन्न एजेंसियों को मौसम व जलवायु परिवर्तन से संबंधित डेटा भेजेगा।
इसरो के लिए क्यों खास है यह लॉन्चिंग?
- इसरो का GSLV-F10 रॉकेट 2,268 किलो के Gisat-1 को जियो-ऑर्बिट में स्थापित करेगा। इस सैटेलाइट को EOS-03 कोड नाम दिया गया है। इसरो के लिए यह इस साल का पहला प्राइमरी सैटेलाइट लॉन्च है। इससे पहले इसरो ने 28 फरवरी को 18 छोटे सैटेलाइट लॉन्च किए थे। इनमें कुछ देसी सैटेलाइट्स थे और ब्राजील का Amazonia-1 प्राइमरी सैटेलाइट भी था।
- इस नई सीरीज के जियो सैटेलाइट का लॉन्च पिछले साल से टलता आ रहा है। इस साल भी 28 मार्च को इसका लॉन्च तय हुआ था। तब टेक्निकल गड़बड़ी की वजह से लॉन्च टल गया था। इसके बाद अप्रैल और मई में भी लॉन्च डेट्स तय हुई थीं। उस समय कोविड-19 संबंधित प्रतिबंधों की वजह से लॉन्चिंग नहीं हो सकी थी।
- इसरो ने सैटेलाइट के लिए फेयरिंग कैप्सूल में बदलाव किए हैं। यह कार्गो होल्ड के तौर पर काम करेगा। इस लॉन्च के लिए पहली बार 4-मीटर डायमीटर वाले ओजाइव शेप वाले पेलोड फेयरिंग (हीट शील्ड) का इस्तेमाल किया जाएगा। यह शेप एयरोडायनामिक्स को बढ़ावा देगा।
- इसरो के लॉन्च भले ही अटक गए हों, पर विदेशी स्पेस एजेंसियों के प्रोजेक्ट जारी रहे हैं। जनवरी से अब तक चीन ने 22 स्पेस मिशन लॉन्च किए हैं। इसमें स्पेस स्टेशन तक तीन सदस्यों का क्रू-मिशन शामिल है। टेस्ला के एलन मस्क की अमेरिकी स्पेस कंपनी स्पेसएक्स भी इस साल 8 लॉन्च कर चुकी है। इसमें इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक एस्ट्रोनॉट्स को भेजना शामिल है
यह GSLV क्या है?
- यह भारत द्वारा विकसित सबसे बड़ा सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। यह चौथी पीढ़ी का लॉन्च व्हीकल है। इसमें तीन स्टेज और चार बूस्टर हैं। ऊपरी स्टेज में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन लगा है। GSLV का इस्तेमाल मुख्य रूप से सैटेलाइट्स को 36 हजार किमी ऊपर स्थित जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में भेजने में होता है। सैटेलाइट GTO से ऊपर जाकर एक जगह स्थिर नजर आते हैं। किसी ग्राउंड एंटीना से इस पर नजर रखने की जरूरत नहीं होती है। यह कम्युनिकेशन के इस्तेमाल के लिए ज्यादा उपयोगी है।
- यह लॉन्च जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) Mk III से होगा। यह बेहद खास है क्योंकि यह लॉन्च व्हीकल दूसरी बार उड़ान भरेगा। इसने ही आखिरी बार चंद्रयान-2 के साथ उड़ान भरी थी, जो इसरो के इंजीनियरों एक बड़ी उपलब्धि थी। ईंधन की बचत करते हुए इस उड़ान में चंद्रयान को हायर ऑर्बिट तक भेजा गया था।
- इसरो के अनुसार, “GSLV पृथ्वी की निचली कक्षा में 5 टन तक भारी सैटेलाइट्स से लेकर कई छोटे सैटेलाइट्स तक के पेलोड लेकर उड़ान भर सकता है।” चौथी जेनरेशन के लॉन्च व्हीकल चार लिक्विड स्ट्रैप-ऑन के साथ तीन स्टेज वाला व्हीकल है और स्वदेशी रूप क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS), GSLV Mk II का तीसरा स्टेज है।
इसरो के लिए आगे क्या?
- इसरो अगले पांच महीनों में चार और बड़े लॉन्च करने वाला है। सितंबर में इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) के साथ रडार इमेजिंग सैटेलाइट (Risat-1A या EOS-04) स्पेस में भेजेगा। यह दिन-रात बादलों के पार की तस्वीरें भी कैप्चर कर सकेगा। यह पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) से लॉन्च होगा। यह 1800 किलो वजनी सैटेलाइट देश के डिफेंस सिस्टम के लिए उपयोगी होगा। यह दिन-रात और किसी भी मौसमी परिस्थितियों में रियल-टाइम तस्वीरें भेजेगा।
- इस साल के अंत तक स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) का डेब्यू लॉन्च भी हो सकता है। यह एक तीन-स्टेज वाला फुल-सॉलिड लॉन्च व्हीकल है जो 500 किलो वजन वाले पेलोड को पोलर ऑर्बिट में पृथ्वी की सतह से 500 किलोमीटर ऊपर और 300 किलोग्राम पेलोड को सन सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में ले जा सकता है। इसरो नए विकसित लॉन्च सिस्टम का उपयोग ऑन-डिमांड सर्विसेज और छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए करेगा।
साभार-दैनिक भास्कर।
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