पढ़िये ऑपइंडिया की ये खास खबर….
“पड़ोस के देशों में प्रताड़ित किए जाने के कारण जो शरणार्थी भारत आ गए हैं और दिल्ली में रह रहे हैं, उनका आम आदमी पार्टी की सरकार को पूरा ध्यान रखना चाहिए।”
कहने को वो कहते हैं कि उनके पास जाति-धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होता, लेकिन सच्चाई कुछ और है ये सबको पता है। शरणार्थी अगर रोहिंग्या होता है तो ये खबर पहले पन्ने की खबर होती है। अफसोस कि वो इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान में सताए जा रहे हिन्दू थे, जो भारत में शरणार्थी बनकर आ गए थे। इसलिए ये कोई खबर ही नहीं होती।
खबरों के लिए आज अगर गूगल पर सर्च करने भी जाएँ तो मई 2020 में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए भोजन का प्रबंध करती हुई दिखाई देती मिल जाएगी। इसी वर्ष रोहिंग्या शरणार्थियों के कैम्प में लगी आग की खबरें मिलेंगी, लेकिन पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों की खबरें नहीं मिलती हैं।
इस मामले में गुरुवार (5 अगस्त 2021) को एक महत्वपूर्ण फैसला आया। दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार को एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के मामले में निर्देश दिया कि पड़ोस के देशों में प्रताड़ित किए जाने के कारण जो शरणार्थी भारत आ गए हैं और दिल्ली में रह रहे हैं, उनका आम आदमी पार्टी की सरकार को पूरा ध्यान रखना चाहिए। ये जनहित याचिका एक एनजीओ और चार ऐसे व्यक्तियों द्वारा दायर की गई थी, जो पाकिस्तान से भागकर आए हैं और दिल्ली के मजनूं का टीला और सिग्नेचर ब्रिज क्षेत्रों में बने शरणार्थी शिविरों में रहते हैं। इस मामले पर और बात करने से पहले थोड़ा ये सोचना भी जरूरी है कि हम ऐसे शरणार्थियों की समस्याओं को समझते भी हैं?
इस सवाल के साथ ही हाल में आई सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ की किताब ‘पुण्यपथ‘ की भी याद आ जाती है। आस-पड़ोस के देशों से भारत आ रहे हिन्दू शरणार्थियों की सबसे पहली समस्या होती है कि वो अलग धर्म के अनुयायी होने के कारण सताए जा रहे होते हैं। अपनी जमीन, संपत्ति, काम-धंधे, जानी-पहचानी जगहों को छोड़कर कोई दूसरे देश (भारत) के लिए क्यों निकलता होगा? जब ऐसा कोई परिवार रवाना होता है तो वो एक ‘पुण्यपथ’ पर रवाना होता है। उसे विश्वास होता है कि भारत पहुँचने पर उसे धार्मिक आधार पर सताया नहीं जाएगा। उसके साथ रोजगार में और सामाजिक स्तर पर कोई भेदभाव नहीं होगा। ‘पुण्यपथ’ जब ऐसे शरणार्थियों की कहानी सुनाती है तो ये भी बताती चलती है कि उनकी अधिकांश अपेक्षाएँ टूट जाती होंगी।
शरणार्थियों के इस प्रश्न पर हाल ही में सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर जमकर हंगामा मचा था। अंततः उसकी परिणीति दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों में हुई, जिसके परिणाम हम सभी को ज्ञात हैं। दंगों के इन मामलों में हिन्दुओं की हत्याओं की वीभत्स तस्वीरें सामने आई थीं। इन दंगों में सरकारी अधिकारी अंकित शर्मा की कायरतापूर्ण हत्या लोगों को सोचने पर मजबूर करती थीं और आज भी करती हैं।
जाँच शुरू होने पर इस मामले में आश्चर्यजनक खुलासे भी हुए थे। दिल्ली की सरकार चलाने वाली आम आदमी पार्टी के विधायक ताहिर हुसैन के दंगों में लिप्त होने की जानकारी सामने आई थी। पहले मीडिया में ताहिर हुसैन की छत से हथियारों, पेट्रोल बम इत्यादि का इंतजाम तो दिखा ही, बाद में पुलिस की पूछताछ में उसने दंगों में अपनी संलिप्तता भी स्वीकार कर ली थी।
ऐसी स्थिति में जब दिल्ली उच्च न्यायालय का दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को ही हिन्दू शरणार्थियों का नैतिकता और नियमों के आधार पर ध्यान रखने का आदेश आता है तो इसका कितना पालन होगा, ये संदेह के घेरे में है। कोर्ट ने सक्षम अधिकारियों को इस मामले में उचित कानूनों और नीतियों के अनुरूप प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने कहा है।
दरअसल, पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों ने शिकायत की थी कि उनके पास न तो पानी होता है, ना ही उनके पास शौच और सफाई की व्यवस्था है और ना ही बिजली। इसके अलावा उनकी शिकायत थी कि इन शरणार्थी शिविरों में महिलाएँ और बच्चे यौन हिंसा के शिकार भी हो सकते हैं। ये एक तथ्य है कि हिंसा या युद्ध जैसी विकट परिस्थितियों में महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं।
मानसिक उत्पीड़न के बाद अलावा बलात्कार और यौन हिंसा जैसी समस्याओं का भी सामना इन लोगों को करना पड़ता है। शरणार्थियों की समस्याओं पर काम करने वाली गिनी-चुनी संस्थाएँ हैं, जो एनजीओ आमतौर पर दूसरी (रोजगार, स्वास्थ्य जैसी) समस्याओं के लिए उनकी मदद करते हैं, वे ही इन समस्याओं की स्थिति में शरणार्थियों की मदद करते हैं। इस मामले में उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने वालों का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता गौतम झा ने बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशों के बाद भी काम नहीं हुआ है। जो साधारण या मूलभूत आवश्यकताओं का ध्यान रखने के लिए कहा गया था, दिल्ली सरकार उनका भी ध्यान नहीं रख पा रही है।
सीएए/एनआरसी के लिए शाहीन बाग़ के जरिए लम्बे समय तक दिल्ली को बंधक बनाया जाना हम लोग देख चुके हैं। इसके बाद भी तथाकथित किसान आन्दोलन के लिए सड़कें बंद रहीं। सीएए और एनआरसी के मामले में हमने देखा कि कैसे एक समुदाय विशेष ने 1947 में अपना अलग मुल्क लेने के बाद भी रोहिंग्या और बांग्लादेश के मुस्लिमों को देश में लाने के लिए प्रतिबद्धता दिखा रहा है, जबकि सताए गए हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख लोगों को शरण देने का लगातार विरोध कर रहा है। इस मामले में जब अदालत कहती है कि ये सरकार की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वो पाकिस्तान में सताए गए उन अल्पसंख्यकों का ध्यान रखे, जो भारत में शरणार्थी बनकर आए हैं और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास करें, तो उम्मीद की कुछ किरणें दिखने लगती हैं।
इस मामले में ये जरूर कहा जा सकता है कि जब तक आम लोग इन विषयों पर समाज में चर्चा नहीं शुरू करते, तब तक सरकारों पर भी दबाव नहीं बनता। बाकी दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार मानवाधिकार आयोग और उसके बाद उच्च न्यायालय के आदेशों पर कितना ध्यान देती है, ये तो समय के साथ पता चल ही जाएगा।
साभार-ऑपइंडिया।
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