पढ़िए हिन्दुस्तान ये खबर…
गाजियाबाद। कोरोनाकाल में अभिभावकों पर बच्चों की दोहरी जिम्मेदारी आ गई। आमतौर पर दिन का बड़ा हिस्सा घर से बाहर रहने वाले बच्चे पूरी तरह घर तक ही सीमित हो गए। स्कूल-ट्यूशन सब कुछ घर पर ही आ गया। अभिभावकों ने बच्चों के लिए मोबाइल, लैपटॉप पर ऑनलाइन जु़ड़ना सीखा। बच्चों के साथ बैठकर ऑनलाइन क्लास में साथ दिया। इस समय में कई अभिभावकों को अपने बच्चों को भी समझने का मौका मिला। इसका असर बच्चों व अभिभावकों के रिश्ते पर पड़ा। जो कि कोरोना का हल बना। गोविंदपुरम निवासी अनुराधा ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं। एक पांचवीं व दूसरा आठवीं में पढ़ता है। उनका बड़ा बेटा लगातार उनसे कटता जा रहा था। वह भी नौकरी में हैं। ऐसे में बच्चों के साथ बहुत ज्यादा समय नहीं मिल पाता। वह भी डांटती रहती थीं। बीते एक साल से उनका भी घर से काम चल रहा है। बच्चों की ऑनलाइन क्लास है। इस दौरान वह पूरे समय ही बच्चों के संपर्क में रहती हैं। बाहर जाने का मौका नहीं था। ऐसे में उनको अपने बच्चे को बेहतर ढ़ंग से समझने का मौका मिला। पढ़ाई से इतर दूसरी बातें भी समझाई। अब उसके व्यवहार काफी बदलाव आया है।
शालीमार गार्डन निवासी अनीता दो बच्चों की माता हैं। वह भी नौकरी में हैं। जब से जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगे उनका संवाद भी कम होने लगा। वह भी बड़े होते बच्चों के साथ निश्चिंत हो गई, लेकिन इससे उनके बच्चों ने उनसे अपनी बात साझा करनी कम कर दी थीं। लॉकडाउन में उनको इसका अहसास हुआ। बच्चों को सिर्फ व्यस्त रखना काफी नहीं है उनको सही दिशा देना भी जरूरी है नहीं तो वह कोचिंग, स्कूल व दूसरी जगह क्या कर रहे है इससे आप पूरी तरह अनभिग रहते हैं। आज के दौर में बच्चों से साथ सही मार्गदर्शन के साथ जुड़ाव जरूरी है।
साभार : हिन्दुस्तान।
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