पढ़िये ऑपइंडिया की ये खास खबर….
अफगानिस्तान में तालिबान ने रॉयटर्स के फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की हत्या कर दी। इसके बाद लिबरल गिरोह ने तालिबान को दोष देने की बजाए हिन्दुओं को भला-बुरा कहा। रवीश सरीखे पत्रकारों ने ‘बंदूक से निकली गोली’ को लानतें भेजीं। अब खुलासा हुआ है कि तालिबान ने न सिर्फ दानिश सिद्दीकी की हत्या की थी, बल्कि उनका सिर भी कुचल दिया था। ये पहले ही पता चल चुका है कि उन्हें एक नहीं, कई गोलियाँ मारी गई थीं।
पुलित्जर अवॉर्ड विजेता फोटोग्राफर के बारे में अफगानिस्तान के कमांडर बिलाल अहमद ने खुलासा किया है कि उनके शव के साथ भी बर्बरता की गई थी। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि चूँकि दानिश सिद्दीकी भारतीय थे और तालिबानी भारत से नफरत करते हैं, इसीलिए उनके शव के साथ भी बर्बरता की गई थी। 16 जुलाई को हुई इस वारदात के बारे में भारतीय वामपंथी मीडिया ने ‘गोलीबारी में मारे जाने’ की बात कही थी।
बिलाल अहमद पिछले 5 वर्षों से अफगानिस्तान की सेना से जुड़े हुए हैं और बतौर कमांडर तैनात हैं। उन्होंने बताया कि सबसे पहले तो गोली मार के दानिश सिद्दीकी की हत्या की गई, फिर जैसे ही तालिबानियों को पता चला कि वो भारतीय हैं, उन्होंने उनके सिर के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी। तालिबानियों को अच्छी तरह पता था कि वो मर चुके हैं, लेकिन फिर भी उनके शव को क्षत-विक्षत किया गया। तालिबान के भारत से इस कदर नफरत करने का फायदा पाकिस्तान भी उठा रहा है।
दानिश सिद्दीकी के साथ-साथ अफगानिस्तान की स्पेशल फोर्स के कमांडर सेदिक करज़ई को भी मार डाला था। ये घटना कंधार प्रांत के स्पिन बोल्दक में हुई थी। ये एक छोटा सा शहर है, जिसकी सीमाएँ पाकिस्तान से लगती हैं। एक मीडिया पोर्टल की खबर के अनुसार, स्थानीय बुजुर्ग नूर करीम ने कहा कि अगर वो दानिश सिद्दीकी से मिले होते तो उन्होंने उन्हें इस शहर में न घुसने की सलाह दी होती।
उन्होंने कहा कि वो कई सप्ताह से इस युद्ध को अपनी आँखों से देख रहे हैं और वो किसी भी नागरिक को यहाँ आने की सलाह नहीं देंगे, खासकर किसी भारतीय को। अमेरिका ने इन क्षेत्रों से अपनी सेना हटा ली है, जिसके बाद वहाँ ये स्थिति पैदा हुई है। एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि दानिश सिद्दीकी करीब एक महीने से अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग कर रहे थे। एक अफगान पुलिस अधिकारी ने किस तरह मदद आने से पहले तक जिले को 3 दिन तक बचाए रखा और तालिबान से संघर्ष करते रहे, उन्हें रेस्क्यू किए जाने को लेकर उन्होंने एक स्टोरी भी की थी।
वो स्पेशल फोर्सेज के साथ वहाँ गए थे। इसी दौरान एक रॉकेट उनके काफी करीब गिरा और उन्होंने किसी तरह छिप कर उसे अपने कैमरे में कैद किया। इस रॉकेट से उनकी गाड़ियाँ तबाह हो गई थीं। एक बार वो घायल भी हुए। स्थानीय पत्रकार ने बताया कि सिद्दीकी हमेशा सेना के साथ ही थे। हालाँकि, उनके घायल होने के बाद रॉयटर्स ने उन्हें वापस क्यों नहीं बुलाया, ये सवाल पूछे जा रहे हैं। सिद्दीकी और करज़ई एक ही कार से जा रहे थे, तभी तालिबान ने उन्हें घेरा।
जब वो कुछ दुकानदारों से बात कर रहे थे, तभी तालिबानियों ने हमला किया और उन्हें मार डाला। तालिबान इस घटना में अपनी भागीदारी को नकार रहा है। जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि तालिबान ने हत्या कर के लाश भी रखी हुई थी और कई बार बातचीत के बाद शव लौटाया गया। स्थानीय पत्रकार का कहना है कि दानिश सिद्दीकी की लाश को तालिबान ने क्षत-विक्षत किया और अपमानित किया।
बता दें कि तालिबान ने दानिश सिद्दीकी की हत्या के बाद माफ़ी भी माँगी है। जब उनके ‘काम’ के बारे में पता चला, तब तालिबान ने एक बयान जारी किया। तालिबान का कहना है कि उसे पता नहीं है कि वो किसकी गोली से मारे गए। साथ ही कहा कि युद्ध क्षेत्र में आने वाले पत्रकारों को उसे सूचित करना चाहिए, वो उनका ख्याल रखेगा। साथ ही इस बात पर ‘दुःख जताया’ कि पत्रकार बिना उसे सूचित किए युद्ध क्षेत्र में आ रहे हैं।
जहाँ तक दानिश सिद्दीकी के ‘काम’ की बात है, दिल्ली दंगा से लेकर कुंभ मेला तक, उन्होंने हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए कई तस्वीरें क्लिक की थीं। जहाँ कुंभ की तस्वीर में कोरोना का जिक्र किया गया, ‘किसान आंदोलन’ की तस्वीर में ज्यादा भीड़ होने के बावजूद उसका महिमामंडन किया गया। साथ ही उन्होंने कोरोना के दौरान हिन्दुओं की जलती चिताओं की कई तस्वीरें क्लिक की थीं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बेचा गया और इनके आधार पर भारत को बदनाम किया गया।
साभार-ऑपइंडिया।
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