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अटार्नी जनरल ने कहा कि कानून की किताबें अभी पूरी तरह से नहीं बदली रही है जिसके चलते यह गड़बड़ी हो रही है। अटॉर्नी जनरल के जवाब पर कोर्ट ने हैरानी जताते हुए सरकार को नोटिस जारी किया है।
New delhi: देश की पुलिस कानून का किस तरह मजाक बना रही है इस बात का बड़ा उदाहरण सोमवार को तब सामने आया जब मानवाधिकार पर काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने सुप्रीम को बताया कि पुलिस अभी भी लोगों के खिलाफ धारा 66A के तहत कार्रवाई कर रही है। [ 66A Law Hindi News]
दरअसल धारा 66A को सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में असंविधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था लेकिन बावजूद इसके देश भर में पुलिस अभी तक इस धारा के तहत लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर गिरफ्तारी कर रही है। चौंका देने वाले इस मामले पर कोर्ट ने हैरानी जताते हुए केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि जब 66A को 2015 में रद्द कर दिया गया है तो उसका इस्तेमाल क्यों और किस अधिकार से किया जा रहा है।
66A के 745 केस पेंडिंग
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने कोर्ट याचिका दायर कर कहा है कि देशभर की अदालतों में अभी भी 66A के तहत दर्ज 745 केस पेंडिंग चल रहे हैं। संस्था के वकील ने संजय पारिख ने बताया कि इस धारा को 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया था, उसके बावजूद पुलिस इसका इस्तेमाल कर रही है जो कोर्ट के आदेश की आवेहलना है।
सरकार की ओर से दिया गया बेतुका बयान
इस मामले में सरकार की तरफ से उपस्थित हुए अटार्नी जनरल ने कहा कि कानून की किताबें अभी पूरी तरह से नहीं बदली रही है जिसके चलते यह गड़बड़ी हो रही है। अटॉर्नी जनरल के जवाब पर कोर्ट ने हैरानी जताते हुए सरकार को नोटिस जारी किया है।
अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि किताबों में नीचे फुटनोट लिखा होता है जिसमें साफ-साफ लिखा होता है कि यह धारा सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी है लेकिन बावजूद इसके इस फुटनोट पर कोई ध्यान नहीं देता इसलिए किताबों में और थोड़ा साफ लिखा जाना चाहिए ताकि पुलिस अधिकारी भ्रमित न हों।
क्या है धारा 66A
आपको बता दें कि देश में साल 2000 में आईटी कानून लागू किए गए थे। इसके बाद 2008 में इसमें संशोधन करके 66A को जोड़ा गया था। इस धारा के अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया पर कुछ आपत्तिजनक पोस्ट करता है या ईमेल के जरिए कुछ आपत्तिजनक कंटेट किसी दूसरे को भेजता है तो उसे गिरफ्तार किए जाने का अधिकार था। इस अपराध में आरोप साबित होने पर 3 साल की कैद व जुर्माने की सजा का भी प्रावधान था।
2015 में कोर्ट ने किया रद्द
2015 में श्रेया सिंघल ने इसके खिलाफ याचिका दायर कर इसे संविधान का उलंघन करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच करने केे बाद 2015 में 66A को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। हैरानी की बात ये है करीब 6 साल बीत जाने के बाद भी पुलिस को काेर्ट का आदेश मामूल नही है। शायद इससे बड़ी लापरवाही और कोई नही हो सकती है। साभार-आँखोंदेखी लाइव
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