पढ़िये दी बैटर इण्डिया की ये खबर
मिलिए चंडीगढ़ की इन चार महिलाओं से, जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपनी फिटनेस पर ज्यादा ध्यान देने का फैसला किया और साइकिलिंग करने की सोची। पिछले एक साल से ये तकरीबन हर दिन 30 से 40 किमी साइकिलिंग करती हैं।
जब बात अपने लिए समय निकालने की आती है, तो ज्यातातर महिलाएं घर का काम या बच्चों की देखभाल का बहाना बनाकर पीछे हट जाती हैं। ऐसे में अगर कोई साथी मिल जाए, तो हमें प्रेरणा मिलती है और कोई भी फिटनेस एक्टिविटी करना आसान हो जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ, चंडीगढ़ की On Wheels साइकिलिंग ग्रुप की इन चार महिलाओं के साथ। यह ग्रुप है, मंजू शर्मा (50), सिमरन (47), डॉ. ऋचा सेतिया (46), और प्रीति जैन (39) का। हालांकि, ये चारों ही पहले से अपनी फिटनेस को लेकर जागरूक रही हैं। लेकिन, कभी किसी एक रूटीन को फॉलो करना, इनके लिए हमेशा से एक चुनौती थी। द बेटर इंडिया से बात करते हुए ये बताती हैं, “साथ में मिलकर साइकिलिंग करते हुए, हमें तक़रीबन एक साल से ज्यादा हो गया है और शायद ही ऐसा कोई दिन होगा, जब हमने साइकिलिंग न की हो।” जब इन्होंने इस तरह साइकिलिंग शुरू की तब उन्हें पता चला, महिलाओं के लिए साइकिल चलाना कितना लाभकारी है। (cycling benefits for women)
कैसे बना इनका यह ग्रुप
ये चारों ही चंडीगढ़ के एक क्लब से, सालों से जुड़ी हुई थीं। अक्सर, क्लब एक्टिविटी में एक दूसरे से मिलती भी रहती थीं। प्रीति और सिमरन, ज़ीरकपुर में रहती हैं, जबकि ऋचा और मंजू, पंचकुला में। सिमरन बताती हैं, “मुझे हमेशा से स्पोर्ट्स में काफ़ी दिलचस्पी थी। लेकिन बचपन में, मुझे किसी खेल से जुड़ने का मौका ही नहीं मिला। इसलिए, मैं अपने बेटे को हमेशा से खेलने के लिए प्रेरित करती थी। उसको खेलता देख, मुझे खुशी मिलती। साइकिलिंग की शुरुआत भी, मैंने उसकी साइकिल से ही की थी।”
सिमरन कभी-कभी साइकिल चलाती थीं। तभी उन्हें पता चला कि प्रीति भी साइकिल चलाती हैं। बाद में, इन दोनों ने मिलकर साइकिल चलाने की शुरुआत की।
इन दोनों के साइकिलिंग ग्रुप के बारे में जब ऋचा को पता चला, तो उन्होंने भी इस ग्रुप से जुड़ने का फैसला किया। हालंकि वह बताती हैं, “मैं रेंटल साइकिल लेकर कभी-कभी साइकिल चलाया करती थी। लेकिन नियमित नहीं रह पाती थी। प्रीति और सिमरन ने मुझे प्रेरित किया और हर दिन वे मुझे ज़ीरकपुर से पंचकूला तक लेने आने लगीं।”
मंजू, जो हमेशा से एक गृहिणी रही हैं, लॉकडाउन में अपने लिए कुछ समय निकालना चाहती थीं। वह जब भी सोशल मिडिया पर, ऋचा, प्रीति और सिमरम की साइकिलिंग की तस्वीरें देखतीं, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता। हालांकि, वह अपने घुटनों के दर्द से थोड़ी परेशान थीं। लेकिन फिर भी हिम्मत करके, उन्होंने भी एक रेंटल साइकिल के साथ शुरुआत की।
वह बताती हैं, “मैंने 1988 में स्कूल के बाद, कभी साइकिल नहीं चलाई थी। इसके अलावा, वे सभी उम्र में भी मुझसे छोटी थीं। इसलिए मुझे लगा था कि मैं इनके साथ नियमित नहीं जा पाऊँगी। लेकिन आज On Wheels ग्रुप से जुड़कर, मैं कई किमी साइकिलिंग कर पा रही हूँ।”
ग्रुप के फायदे
वे बताती हैं, “हम साथ मिलकर दूर-दूर तक जा पाते हैं, जो अकेले जाना सम्भव नहीं हो पाता। साथ ही, अगर एक थोड़ा आलसी बनता है, तो दूसरा उसे प्रेरित करता है।” उन्होंने बताया कि जब भी कोई थोड़ा धीरे साइकिल चलाता है, तो कोई न कोई उसका साथ देता है। मंजू कहती हैं, “पहले मैं हमेशा पीछे रह जाया करती थी, लेकिन कोई न कोई मेरा साथ देता और ऐसे धीरे-धीरे करके हम साथ हो जाते।”
उनका कहना है, “सालों से हम घर और काम की जिम्मेदारियों के कारण अपने ऊपर ध्यान ही नहीं दे पा रहे थे। लॉकडाउन के दौरान, जब सभी घर पर थे, तब हमें अपने लिए कुछ समय मिल पाया और इसका हमने सही इस्तेमाल करने का फैसला किया।”
उन्हें शुरुआत में थोड़ी तकलीफ होती थी। सिमरन बताती हैं, “मैंने कभी दो-चार किमी से ज्यादा साइकिल नहीं चलाई थी। लेकिन ग्रुप में हम लम्बी यात्रा करने लगे, जिससे पैरों में दर्द भी होता। बावजूद इसके, मुझे सुबह का समय अपने लिए निकालना था, तो मैंने इसे जारी रखा। आज मैं आसानी से 40 किमी साइकिलिंग कर लेती हूँ।”
इसी तरह ऋचा और मंजू को भी पैरों में दर्द होता था। वे बताती हैं, “हम घरवालों को कभी नहीं कहते कि हम थक गए या पैरों में दर्द है। साइकिलिंग के लिए कभी हमने अपने नियमित रूटीन को नहीं बदला।
On Wheels की मस्ती
ये चारों, हर दिन सुबह चार बजे घर से निकल जाती हैं। वे कहती हैं, “सुबह सूरज को निकलते देखने में हमें बेहद सुकून मिलता है। हम रात को यही सोचकर सोते हैं कि कल कहाँ से सनराइज देखेंगें। अब तो हमने चंडीगढ़ के आसपास इतनी सारी नई जगहें खोज निकाली हैं, जो शायद किसी को पता भी नहीं थी।”
ऋचा, जो एक होमियोपैथी डॉक्टर हैं, वह बताती हैं, “मुझे नौ बजे अपने क्लिनिक पहुंचना होता है, फिर भी एक दिन भी साइकिलिंग छोड़ने से, मुझे दिन खाली-खाली सा लगता है।”
वे कहती हैं कि हमें ऐसा नहीं लगता कि हम एक्सरसाइज करने जा रहे हैं। बल्कि, यह हमारे लिए सुबह की आउटिंग है, जिसे हम एक दिन भी मिस नहीं करना चाहते।
साइकिल चलाने के फायदे
इन चारों ने ही एक साल में, अपना कई किलो वजन कम कर लिया है। इसके अलावा वह बताती हैं कि उम्र के साथ बॉडी टोनिंग भी खराब हो जाती है। लेकिन साइकिलिंग से हम काफी फिट हो गए हैं। शारीरिक फायदों के साथ ही (cycling health benefits), वे अब पहले से ज्यादा खुश भी महसूस करती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें अब ऐसा लगता ही नहीं कि कोई उम्र में छोटा है या बड़ा है।
वे कहती हैं, “हम कॉलेज के दिनों जैसा महसूस कर रहे हैं। और जब आप एक उम्र के बाद कुछ नया करते हैं, तो कई लोग आपसे प्रेरणा लेने लगते हैं।”
आगे प्रीति कहती हैं, “हम चाहते हैं कि हम अलग-अलग साइकिलिंग प्रतियोगिता का हिस्सा बनें। साथ ही, किसी बड़े साइकिलिंग ग्रुप से भी जुड़ें, जिससे हमें और प्रेरणा मिलेगी।”
On Wheels की फिटनेस (cycling fitness benefits) के प्रति जागरूकता देख, कई और महिलाएं भी इनसे जुड़ना चाहती हैं। इसी साल महिला दिवस के दिन, इन चारों ने अपने क्लब के माध्यम से एक साइकिलिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की थी, जिसमें 25 से 30 महिलाओं ने भाग लिया था।
आशा है, आपको भी On Wheels ग्रुप की साइकिलिंग का यह सफर मजेदार लगा होगा। तो देर किस बात की, आप भी अपने फिटनेस जर्नी के लिए, सही फिटनेस पार्टनर की तलाश करें और शुरू हो जाएँ। साभार-दी बैटर इण्डिया
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